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Showing posts from September, 2015

प्रेमी प्रेमास्पद एक देह दो प्राण

प्रेमी छिप नही पाते ढिढोरा वो पिटता है जिससे हुआ है कारण ।।। प्रेम एक करता है । यहां देह कोई भीतर कोई है होता वही है जो वो चाहते है केवल प्रेमी के आगे ईश्वर अपनी चलाते है । संस...

कन्दर्प केलि-रस

कन्दर्प केलि-रस कमली में लिपटे युगल-रसिले अपनी छबीली छटा से सन्पुर्ण निकुञ्जस्थली को उद्भासित करते , श्वेत बिछौने पर आसीन थे | आज की शोभा और ही थी | घनी-कजरारी घनमाला में से झा...

पद व शायरी

रसिकनी सलोनी प्रिया मंद मंद मुसुकाती प्रिया प्रेम कल्लोनि बहाती प्रफुल्लित जग में बृजराज साँवरे संग कुमुदित वन में श्यामाश्याम दरश प्यासी अंखियाँ श्याम की सताती कटा...

पद व शायरी

रसिकनी सलोनी प्रिया मंद मंद मुसुकाती प्रिया प्रेम कल्लोनि बहाती प्रफुल्लित जग में बृजराज साँवरे संग कुमुदित वन में श्यामाश्याम दरश प्यासी अंखियाँ श्याम की सताती कटा...

काहे क्षमा करे हो

काहे क्षमा करे हो सकल अपराध मोरे गहवर के वानर संग लटकाय दो मोहे या बनाय दो शाप देत शिला ही छुटत न छुटत काम कामना ही बैठ जाओ मो पर के धरो नित आवत ही लात चार प्रेम से ना मानूं तो सह...

विरह Shayri

मिलन से पहले वो साँची पीर की गुरेज़ है संगेमरमर से नही कँटीली पथदण्डी की तलब है यूँ सस्ते में भी मिले रब तो क्या रब रहा वो कुछ यूँ मिले की न सिसकियां थमे न आहे रुके तू कोहिनूर ह...

किंकरी मंजरी सहचरी

किंकरी मंजरी सहचरी दासी अपनो बनाय लो री मोहे सखियन की सखी की ख्वासी ही बनाय लो री नित अपराध करत फिरूं निकुंज लता से मोहे बंधाय दियो री

निकुंज प्रेम रस गली अति सांकरी

निकुंज प्रेम रस गली अति सांकरी नित नित कछु सरको जाये चित् भागत फिरे जग माये युगल पद प्रेम सु याने लगाये ठिठौली करत जीवन खोय ही दियो क्षण निमिष प्रेम सांचों चाखो जाये तृषित ...

भाव पद

बांवरी बनुं ऐसी कि सामने हो पिया तो हो जाऊं मुर्छित गहरी ऐसो कृपा रस दे प्रिया जी ना सुध तन की रहत बने न मन काहे तनिक कहीं लगे न धन युगल बिन कछु मेरो बने चुनरी बिखरी नैना उधडे ...

पीर ऐसी उठाय जाये पीया रे

पीर ऐसी उठ जाये पिया रे तोरे बिन न दर्द और सुहाय तोरा नाम ही औषध हो जाय जीवत जीवत मरुं नित क्षण मरत मरत जीयुं क्षण क्षण कहत कहत ठहर अधर करत कम्पन न कहत कहत बस कहत रहूं मोरा निज ध...

कैसो बांवरो कर

हाय सखी री !! कैसो बांवरो कर छोडिग्यो कैसो घायल तन मन कर भुलाय दियो कैसो अपनो कर लिपटायो तुने कैसो तुने नैनन फिराय लियो कैसौ अंग रंग भरत प्रेम को कैसो विरह नाद सुनाय दियो

हाय सखी वल्लभ

कैसे कहूं सखी ... मेरो मन बसत राधावल्लभ लाल है हाय ! देखन से ही सबहूं खो जाय है नैनन में डुबन लागुं निकलत ना जाय है बेरी शरमाय परदो गिराय जिवत मरत भी न जाय है पूनी संभलू फिर आय फिर ...

राधा पद

श्यामाश्याम दरश प्यासी अंखियाँ श्याम की सताती कटारी अंखियाँ तिरक तिरछ निरुपम श्यामा अंखियाँ करत टौना होवत गौणा हाय री बेरन अँखियाँ रहत मगन इह लोकन में सदा अखियाँ हाय री...

प्रश्न और रामसुखदास महाराज जी

राधे राधे..  "गीताप्रेस गोरखपुर परिवार" के ओर से आज का सत्संग : दिनांक : 17-09-2015 🌷🌷      बहुत-से सज्जन मन में शंका उत्पन्न कर इस प्रकार के प्रश्न करते हैं कि दो प्यारे मित्र जैसे आपस म...