*पाटवान्विता*
...अधरं मधुरं...वदनं मधुरं...नयनं मधुरं...हंसितं मधुरं...हृदयं मधुरं...गमनं मधुरं...मधुराधिपते रखिलं मधुरं... ... ...
हा...अरी चतुरा...तनिक थम जा...
सुंदर सुंदर...मधुर मधुर...में भावभंजिता डुबकी लग ही रही थी कि अरी तू जे का कह रही री...मधुराधिपते...हा...हाँ री...यानि जे मधुर मधुकर रसिक शेखर रसशिरोमणि...स्वतः मधुर ना है का...मधुराधिपते...जे तो मधुरा से मधुर होवे का... ... ...
हाँ री मेरी भोरी सखी...जे मधुराधिपते...तब ही तो मधुर भयो री...जाके अधरन सौं लगी जे बाँसुरिया और बाँसुरिया के बोल कह रहे...*मधुरा*...*मधुरा*...*मधुरा*...*राधा राधा*पुकारे ना जे बंसी री...तो जे बंसी की मधुरिमा इस नाम से ही ना...जो स्वयं प्रियतम के मुख से फूंकी जाती हो भले ही...पर प्रियतम ही इस नामरस में डूब जाते री...जे बंसी की शोभा तब ही जब श्यामसुंदर के अधरों पर सजे और अधर तो सदा राधारस पिपासित पुकार पुकार कर नाम लेते री...तो जे मधुराधिपते मधुर भये चूंकि मधुरा ही इनकी मुरली...और मधुरा ही इनके अधर...मधुर इनकी प्रेम रसभरी सरसीली वाणी री...और...और...और अत्यधिक मधुर इनकी प्रीति...जो इन्हें शहद मिसरी से भी मधुर करे री...हाँ...मधुराधिपते...सखी री...जे रसिकशेखर और इनकी कथाएँ अनन्य व विस्तृत हैं...जिनके एक भृकुटि विलास से सृष्टिलय हो जाती सखी री...उनकी ऐश्वर्या शक्ति अतिशय विशालकाय...अनंत श्रृंगार...अनंत रस...अनंत प्रेम की घणीभूत सुंदर गहन रसमूर्ति जे श्यामसुंदर...पर सखी...जे सर्वश्रेष्ठ कलाओं की निधि हमारी *पाटवन्विता* चतुरा श्यामा जू री...जिनके एक इशारे से श्यामसुंदर का मुखकमल खिल भी उठता और कभी झुक भी जाता री...प्रेम में सहज झुकाव
प्यारी सुकुमारी किशोरी जू के समक्ष इनका मुकुट तो क्या...इनका हृदय कमल भी झुका रहता री...प्रेम पिपासु श्यामसुंदर प्यारी जू की तनिक सी कृपाकोर तांई झुक झुक जाते...प्रेम पुजारी जो भये...प्यारी जू के प्रेम के ढिंग जे नित्य नव रसकेलियों में जैसे चतुर सखियों के बिछाए जाल में फंसते रहते तैसे ही प्यारी जू की किंचित सी चतुराई से रीझ कर हार जाते...
अहा...निरख तो प्यारी जू पुष्प चयन कर रहीं और उनके कर जो भी पुष्प लगता प्रियतम उस पुष्प की ही बलाइयाँ लेते ना अघाते और प्यारी जू की दृष्टि जहाँ तहाँ पड़ती...प्रियतम वहाँ वहाँ नयन बिछा लेते कि उनकी सुकुमार्यता भरी दृष्टि भी कहीं मखमली मधुर रस ही ढुरावे...और सखी जे हमारी प्यारी सुकुमारी इतनी सुशील व चतुर कि जहाँ जिस भी लता बेल को किंचित प्रेम दृष्टिपान करातीं...उस प्रत्येक लता कुंज से भी प्यारी जू की झलक उघर आती जिससे वह मधुर मधुर हो जाती री और हमारे प्रियतम उसी में प्यारी जू का दरस कर अत्यंत सुख पाते...कहने का तात्पर्य यह कि शील...चतुरा श्यामा जू के रस दृष्टिपात से समस्त वृंदाविपिन सरूपवंत हो जाता और प्रियतम को आकर्षित करता...
सखी...प्रिय इतने मनमोहक व आनंद घन सर्वश्रेष्ठ हैं कि समस्त चराचर के स्वामी के दृष्टिपात से कण कण स्पंदित हो उठता...पर जिन ललित किशोरी जू की एक मधुर झलक पड़ते ही प्यारे श्यामसुंदर जू का रोम रोम स्पंदित हो कर खिल उठता...ऐसी स्वामिनी की क्या टेर री...हा किशोरी...हा किशोरी पुकारते प्रिय मदमस्त खिंचे से चले आते इनकी ओर...रसकमलिनी पर ज्यों भ्रमर...अहा... ... ...
"जो जाको देखै है जाई,सो रूपवंत ह्वै जाई"
हाँ सखी री...ऐसी हैं हमारी प्यारी चतुरा किशोरी जू...जिनकी किंचित सी नयनकोर से पियहिय सरल सहज हो उठता री...
पुष्प चयन करतीं श्यामा जू की नशीली चितवन सखी री...ऐसी फरकीली कि सखियों से नयन चुराकर प्यारी जू मुड़ मुड़ कर प्रियतम पर अपने रसीले प्रेमबाण साधे रहतीं और प्रियतम प्रतिपल किशोरी जू की चितवन से घायल हुए उनके पीछे पीछे चले आते...फिर चंचलता से किशोरी जू सखियन की ओट से प्रियतम को तनिक भृकुटि विलासिता से अघात पहुँचातीं और उन्हें और समीप आने के लिए उकसातीं...चतुरशिरोमणि श्यामसुंदर चतुरा श्रीश्यामा जू के प्रत्येक रसभृकुटिविलास से सधे बिंधे से उनकी ओर खिंचे चले आते...
सखी...जब प्यारी जू सखियों की आढ़ लिए प्रियतम को रसझलक दिखलातीं तो सखियाँ भी उनके हिय की भाषा समझ प्रियतम को दग्ध करने लगतीं पर तभी प्यारी जू रसभ्रमित रसक्षुधित श्यामसुंदर को सखियों की टेढ़ी चाल से बचाकर उन्हें प्रेमपाश में बाँध लेतीं ताकि सखियाँ पाटवन्विता श्यामा जू के हियकमल से और छेड़छाड़ ना कर सकें और एकांत में दग्ध रसपुजारी को विदग्ध कर रसपान करातीं...ऐसी भोरी किशोरी जू हमारी...जिनकी प्यारी भोली सी चतुराई भी प्रियतम सुखरूप ही होती...प्यारी जू की प्रियतम के प्रति ये चंचल चतुर अट्ठकेलियों पर जहाँ प्रियतम बलिहार जाते वहीं सखियाँ इसे प्रियतम हेतु ही प्यारी नखरीली चतुरा की चतुराई जान उनकी गाढ़ प्रीति की सराहना भी करतीं...अहा...
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!
"चाँपत चरन बिहारी तेरे।
सुरंग सेज पौढ़ीं सुख स्वामिनी,जीतीं कोक किये हरि चेरे ।१।
रसिका नागरी कुशल अचागरी,फाँसे तें रूप माधुरी फेरे ।
ज्यौं राखौ त्यौं रहत रस विवश,जीवत तुमहि राखि जिय डेरे ।२।
जाँचत प्रीति रसिक लोभी नित,अति रिझवार लड़ावत नेरे।
कृष्णचन्द्र राधा चरणदासि वर,दोऊ एक रस रंग घनेरे ।३।"
'मैं तेरी मैं तेरी'...हाँ री...बस इतनो ही कही थी यानैं...बस फेर का...फेर तो तबही तें संग संग डोलै री...इत उत ना जात...कबहू ना बिसरात री... ... ...
जे कहते कहते प्यारी जू तनिक मुस्काए गईं और लजाकर एक नजर निरखी प्रियमुखकमल तें और आँचल में छुप गईं...अहा... ... ...
सांची री...जितनो जितनो माधुर्य श्रृंगार रस गाढ़ो ह्वै उतनो उतनो प्यारी मुखकमल खिल खिल कर सुंदर सुंदर सुंदरतम ह्वै और प्रियहिय द्रवित ह्वै...अकुलावै री...
समग्र विश्व बखानै ना...प्रियतम प्रियतम...मेरो मनमोहन...मेरो लालकुंजबिहारी...और सगरी गोपियन बाल सखा व सखियन प्रियनाम लै लै इतरावै ना...सखी...अगिनत पुकारें यातें...इक कोर कृपा की कर दो...मेरी ओर निहारो...जाने का का...
पर सखी...मोर हिय तें एक ही पुकार निकसै...युगल...हा युगल...परस्पर निहारो...परस्पर डूबे रहो...चिरकाल तांई...परस्पर रस स्थितियों में निरखते उलझते निभृत सुख पावो...अहा...चिरजिवो सरकार लावण्यसारा प्यारी जू...
सखी...जे प्यारे जू का बाँकपन निरखी हो ना...हा... ... ...
व्यापै ज्युं...प्रतिपल बाँके और और और अत्यधिक बाँके हो रहे ना...अरी...जे प्यारे जू का बाँकापन हमारी प्यारी सुकुमारी पाटवन्विता चतुरा किशोरी जू का नित्य संग ही तो है जिन्हें निरख प्रियतम प्रतिअंग तें झुकि झुकि प्यारी जू के रूप सौंदर्य का दरस करैं और डूबैं...
अब सबहि तें हिय सौं एक ही पुकार होवै...तुम मेरे तुम मेरे...सखी...पर हमारी चतुरशिरोमनि अखिल सौंदर्य माधुर्य की अभूतपूर्व लावण्यरससार स्वरूपा प्रीति श्रीश्यामा जू ने तो इतनो ही कह्यौ कि'मैं तेरी मैं तेरी'अहा...बस रीझ गए प्रियतम...अब प्यारी जू इतनो कह चाहे नेह करें या मान री...प्रियतम तो संग संग डोले ही डोले...
अब जितनो जितनो प्रियतम निहारे प्यारी जू को उतनो उतनो यांके रंग में रंग्यौ जावै री...
प्यारी जू को इठला कर लजा कर ठुमक कर ठसक से आते देख प्रियतम की सुद्धि खोवै और वे तमाल बन एकटक प्यारी जू को अनवरत निहारे बस...यांकी बौराई बुद्धि जाने कब टाँग टेढ़ी कर प्यारी जू के समीप आने के ख्याल से टकटकी से निहारने लगे...प्यारी जू तनिक मुस्काए दे तो प्रियतम की कटि किंकणी लचक जावै और वंशी अधर धर प्यारी जू की हंसी से क्षुधित मुर्छित हो कमर व ग्रीवा झुक जावै...प्यारी जू मंद मंथर चाल से जब प्रियतम की तरफ बढ़ें तो प्रिय यांकी पदथाप से पैंजनियों की मधुर रागिनियों पर बलि बलि जाते वंशी की तान भूल जाते और जब वंशी की तान गई तो प्रिया जू के ललाट से गिरती अलकों के मध्य से जब किंचित भृकुटि विलास की झलक प्रिय पर पड़ती तो उनके नयन प्यारी जू के चरनन सौं लिपट लपट कर झुक जावैं री...अहा...हमारी चतुर ललितकिशोरी प्यारी श्यामा जू...प्रतिक्षण बाँकी चितवन सौं प्रियमन छीन लेवै री...और प्यारे जू तमाल सम लताजाल से बंधे बंधे रह जावैं...तृन टूटत है री प्यारी जू की चतुररस से श्रृंगारित रूपमाधुरी पर...अहा...
प्यारे अधरों की मुस्कन व टेढ़ी भृकुटि की मंद मधुर थिरकन पर...प्यारी जू का बाँकपन प्यारे जू का श्रृंगार है जावै और लागै ज्यूं प्रियतम प्यारी जू के रूपमाधुर्य से निखरे निखरे ऋणि हो जावैं...और यांका मुकुट झुक जावै...अहा...
रसविवश प्रियतम प्यारी जू सौं नयन ना मिला पाते पर भर भर कर प्यारी चरणों में ढुरक छलक जाते...और प्यारी जू बड़ी चंचलता व चातुर्य से प्रियतम को रसविवश देख संभालने को बेसुद्ध दौड़ पड़तीं और उन्हें हिय से लगा लेतीं...अहा... ... ...
प्यारे सुकुमार कोमल चंचल भावसागर के जे द्वैछबिन पर एकरूप प्रियाप्रियतम स्वामिनी जू की माधुर्य लीलाओं में डूबते ना अघावें और परम रसपुजारी...प्रेमपुजारी प्रियतम श्यामसुंदर प्यारी जू को चातुर्यशालीनता की बड़ाई करते अति नेहसुख पाते री...
सखी री...हमारी प्यारी जू गूढ़ रसस्वामिनी जिन के प्रति रसहाव भाव से प्रियतम श्यामसुंदर बिंधे बिंधे रसपान करते रहते और सखियाँ प्यारे प्यारी जू की इस निभृत रसस्थिति की महाभाव रससंगिनियाँ हुईं उन्हें आशीष देती रहती...अहा... ... ...
अद्भुत रसक्षुधित सारसरूप पाटवन्विता की रसलीला स्वयं क्षुधा हुई प्यारी श्यामा जू...बलिहारी...बलिहारी...नित्य रसीली नवलनागरी श्रीप्रिया राधिका श्यामाप्यारी जू पर...बलिहारी... ... ...
बलिहारी रसिकन कृपा कोर सौं प्यारी कृष्णसंगिनी सुनंदिनी मृगनयनी चंचलमना चातुर्यशालिनी प्यारी जू की चतुर रासक्रीड़ाओं की रसवर्धन नितनव रससंचारा पर बलिहारी...पाटवन्विता पियहिय दुखभंजिनी...रसवर्धिनी पर.
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!
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