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चन्दा का आला , संगिनी जू

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*चंदा का आला*

सखी री...चंदा का आला...आला री आला...अहा...निरखी हो री...हा...होरी होरी होरी री...तेरी होरी...
सखी री...प्यारी जू के नयन री...नयन...ऐसे रतनारे...ऐसे अनियारे कि सर्व रूप प्रियतम प्यारी कू ही निरखें री...जैसे घन घिर आवें...पर चंदा...हाय...चंदा अपनी चाँदनी सौं भरो पूरो ही इठलावै ना...ऐसे ही प्यारी सुकुमारी के शर्मीले नयन री...चंदा से शीतल...रात्रि के काजर से दमके दमके...अहा...और प्रियतम जैसे आला रूप चंदा के इर्द गिर्द प्रेम की चाँदनी से और केसरिया महक से आरती की थाली सजाए अपनी अखियाँ अटकाए हुए...जहाँ तक जे चाँदनी की आभा छिटक रही वहाँ तक प्रियतम आला रूप इन नयनन सौं अपने मधु पिपासित नयनों को भर रहे री...इतना... ... ...
इतना...कि भर कर उछल उचक रहे और प्यारी के नयनकोर सौं नयनकोर सौं जो सखियन से घिरीं भी प्रियतम को ही सुख हो निहार रहीं...चाँदनी छिटकाती अपनी रूपमाधुरी का पान उन्हें ही करातीं ना...
और सखी इस चाँदनी रात की कजरारी अनियारी रतनारी रसफुहारों से प्रियतम के अधर रोम रोम को नयन ही कर रहीं कि इन्हीं नयनाभिराम प्रेम रसश्रृंगार की निहारन निहारन की बोली मधुर मधुर रसतरंगों में सिमटी लजाती सी पियहिय की रसतृषा को अंकुरित करती और प्रियतम आलारूप आरती उतारते इन नयनों ऐसे डूब रहे कि इनकी प्रतिरोम से रसचाँदनी अखियाँ हो रहीं...अहा...प्यारी के नयन री...
प्यारी के नयनों के द्वारे प्रियनयन झुकि झुकि मधुकर से हुए मंडरा रहे...
सखी री...प्रिय मधुकर उमड़ घुमड़ कर प्यारी प्यारी जू के नयनों के बाणों से घात खाते भी हारते नहीं अपितु लुटते रहते...चंदा के आला से बने प्यारी के मधुरिम सुकमलनयनों की आरती उतारते बलिहारी जाते री...
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