Skip to main content

तृषा , संगिनी जू

!! तृषा !!

एक प्यास जल हाथ में लिए भी ना बुझे कंठ भरे पर हिय से ना उतरे।गहरी प्यास रस पिपासू के हृदय की वीणा की झन्कार।रसिक हृदय की प्यास जो उसका श्रृंगा है प्रियालाल जु हेतु।मधु में डूबे मदमस्त श्रीयुगल परस्पर मकरंद तृषित सदा मिल कर भी ना मिले हुए।रसेन्द्र श्यामसुंदर और रसेन्द्री श्यामा जु जिनकी श्वास से भी मकरंद अनवरत झड़ता है और रगों में प्रेम रस जो परस्पर सुख हेतु सदा अधरों की लाली बन हृदय की गहराईयों से बिन रूके बहता है फिर भी रस तृषा युगल का जीवन तन प्राण।यह प्यास ही राग अनुराग की गहन अनुभूतियों में रस संचार करता और बढ़ाता सदा।गहन रस गाढ़ता में भी गहनतम रस तृषा जो रस पीते भी ना अघाते और रस छूते भी प्यासे।रस जीवन तो रस तृषा प्राणवायु।रसिक श्यामसुंदर का खान पान यह रस और रसिकेश्वरी श्यामा जु के अंगों की झन्कार यह रस।तृप्ति में अतृप्ति पीकर भी व्याकुलता भरी एक गहन प्यास।मकरंद रस पिपासु भ्रमर कमल रस पीते हुए स्वयं को भूल कमल ही हो जाता है।ऐसी गहन प्यास और ऐसे रसिक तृषित युगलवर।
हे प्रिया हे प्रियतम !!
इस तृषा में "र" रूपी अग्नि तत्व
बन सदा रस तृषित रहूँ
रस संचार करती तन प्राणों में
रस बन वृंदावन वीथियों में विचरूं
तुम जो कह दो तो
अनवरत जीवन पर्यन्त तृषा बन
रगों में झन्कृत हो कर बहूँ !!
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रीहरिदास !!

Comments

Popular posts from this blog

युगल स्तुति

॥ युगल स्तुति ॥ जय राधे जय राधे राधे, जय राधे जय श्री राधे। जय कृष्णा जय कृष्णा कृष्णा, जय कृष्णा जय श्री कृष्णा॥ श्यामा गौरी नित्य किशोरी, प्रीतम जोरी श्री राधे। रसिक रसिलौ ...

वृन्दावन शत लीला , धुवदास जु

श्री ध्रुवदास जी कृत बयालीस लीला से उद्घृत श्री वृन्दावन सत लीला प्रथम नाम श्री हरिवंश हित, रत रसना दिन रैन। प्रीति रीति तब पाइये ,अरु श्री वृन्दावन ऐन।।1।। चरण शरण श्री हर...

कहा करुँ बैकुंठ जाय ।

।।श्रीराधे।। कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं नंद, जहाँ नहीं यशोदा, जहाँ न गोपी ग्वालन गायें... कहाँ करूँ वैकुण्ठ जाए.... जहाँ नहीं जल जमुना को निर्मल, और नहीं कदम्ब की छाय.... कहाँ ...