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चल री सखी बिंदराबन रस निरखै , संगिनी जू

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*चल री सखी बिंदराबन रस निरखैं*

"मोहन मोहनी सुहेलरा गाऊँ।
लाड़िलीलाल गहेलरा लड़ाऊँ।।1।।
श्रीवृंदावन घन सहज सोभा मन लोभा उपजावै।
जिनकौं कृपा करैं श्रीस्यामा तिनहिं सुन्यौ जस भावै।।2।।
बिपिन बिलासिनि प्रेम प्रकासिनि जो निजु प्रेमहिं पाऊँ।
ज्यौंहीं ज्यौंहीं कुंजबिहार करौ मिलि मिलि त्यौंहीं त्यौंहीं तुमहिं लड़ाऊँ।।3।।
सुनहु सहेली प्रेम गहेली कौतिक एक दिखाऊँ।
अंचल जोरि चितै तृन तोरौं तन मन मोद बढ़ाऊँ।।4।।
रायबेलि सतबर्ग सेवती बिच बिच चंपे की कलियाँ।
रचि रचि चौसर हार गुँदैं गूँदि पहिरावनि चलि अलियाँ।।5।।
कुसुमित कुंज गुंज अलि माला चंदन चरचित गलियाँ।
सुखद समीर बहत सौरभ जल कमल बिराजत थलियाँ।।6।।
सारस हंस चकोर मोर पिक चात्रिक भाषा भलियाँ।
गावत रस जस पिय प्यारी कौ सखि सुनि पग प्रेम न टलियाँ।।7।।
कबहुँक बाल सलज्जस पिय तन कबहुँ हँसत मुख मोरी।
कबहुँक निपुन सुरति सुख सागर नागर नवल किसोरी।।8।।
छिन छिन प्रति दंपति नव नव रति अंग अंग अभिरामा।
प्रथम समागम स्याम दिनहिं दिन दूलह दुलहिनि स्यामा।।9।।"

आलि री...बिंदराबन रसनहुं की बात अति चौखी लागै री मोय पर तौं तें ना छुपी रह्वै...तू मोरी दुखती रग तें कर धरि दै और फेर मोरी तपती छतिया टटोले री...कबहुं सरहद पार ना कियो री जे निगोड़ी देह तें बिंदराबनन कीं...हा... ... ...
और फेर तू भली कही...यांकी बात सुनावूं तोय जांको रस तो दूर यांकी रसीली बाणी भी जे कानन ना सुहावै...नेक समझ परै ही ना री...
पर जानै का टोना करि गयो...जे भूतनी तें जादूगर...हाय...यांने कही थी... ... ...
जा ढीठ लंगरवा...मौं तें कछु ना पावैगो...कोई रस ना मोपै जो रीझ जावैगो...पर यांको स्वरस ऐसो री...मोय भिगोए गयो...और तो और... प्यारी जू की रसभरी मैना कह ठग गयो री...हाय...छलिया कह रह्यौ...तोय किसोरी चरनन की दासि बनाए राखूंगो...पर निठुर...बरसानो धाम की बंदरिया भी नाए बनाए सकै...
सखी री...जे का करि लै जावैगो मोय रसीली झरोखन वाली ठौर तांई...पगलाए गयौ री...जे तो खुद ही डोलतो फिरै कुंज गलिन में...मिल मिल कै भी ना मिलयौ री हमारी भोरी सुकुमारी स्यामा जू सौं...मौं तें कहै है री...
जे मनभामिनी मानिनी है जावै और मौं तें सगरो प्रेम छुपाए कै हिय में बसाए कै राखै...सखियन संग टहले बिहरे और मोय सतावै री...मैं तनिक ना मानीं यांकी...तो कहन लाग्यौ...
ऐ री...तू मिलाए दे री मोकू अपनी भोरि किसोरी सौं...हाय... ...छल दियो री यांकी मधुर वाणी ने...और भग गयो...अरी... ... ...और तो कछु नाए भह्यौ...बस ! हिय में चटपटी लागी री धाम जाइकै यांको झूठ पकरि कै प्यारी चरनन में बैठ सुनाइवै की...
टीस उठै है री...और सांचि कहूँ रसिकन कृपा तें हिय कू झरोखन सौं किंचित निहारि तो जे बिहारी तो लालि संग छाती सौं छाती...अधरन सौं अधर...और नयनन सौं नैन जोर प्यारी कौं रूप सरूप में रंगह्यौ रसीलो इ रसीलो नीलसुपीत ह्वै रह्यौ...हाय...निगोड़ी जे अखियाँ जेंई झाँकी तें मुँद जावैं री...पर का करूँ जे देह कौ ध्यान है कि छूटै ही ना...हिय की कमलप्रसून सुसज्जित किवरिया बंद करि कै जागतिक प्रपंचन सौं नेह करि न अघावै...हाय...फूटे मेरे भाग री...जरि जरि जावै पर धामहिं ना सिधावै... ... ... *भाग बड़ौ श्रीवृंदावन पायौ
जा रज कौ सुर नर मुनि बंछित बिधि संकर सिर नायौ।।
बहुतक जन्म या रज बिनु बीतै जन्म जन्म डहकायौ* सखी री...का कहूँ री तोसे...बस ! जेहि कि जे देह तें छूटनो तो जुगल कृपा सौंई सम्भव है सकै री...मौं तें तो रत्तिभर भी समरथा ना है री... *सरनि परि रसिकन पदकमलन की
आस भरोसो सबहिंन तौं छोड़ह्यौ नामबाणि जस गाति
ए री...मैं श्रीहरिदास नाम रंग राति...* सखी...यांकी छबि निहारि और चरनन सौं रजकण उठाए कै मस्तक धर लीनि...तब तो तू जानै ही है री...अंधो लुलो कानो बहरो लंगड़ो...कोई भी होवे जे रस की बतियाँ करनो जान जावै री...
जे रजरानी की कृपा ऐसी भई कि अब तो कण कण में रंगीली रसपंखुड़ियाँ झिलमिल झिलमिल दीखैं...और जे झिलमिल झिलमिल प्यारेप्यारी पदकमलन की रुनझुन रुनझुन ही सुनावै... *जित देखूं तित स्याममई* नेक आँखिन सौं निहारूं तो प्रति तमाल तले मोहन वंसी बजातो दीखै और प्रत्येक लतन सौं प्यारी झलकनि नृतति ब्यापै ...प्रत्येक कुंजन तें सखियन कू साज संभार और साज संभावित तें पुष्प लतन पतन के अति सुघर सिंगार...
अरी...जेंई पे जे प्यारी सुकुमारी जू कृपा कोर करै तेंई सौं ब्रिंदाबनन की कुंजन कुंजन रसप्रफुल्लित दरसावै...मन में लोभ ह्वै जाए के का करि जे रसीली सजीली बतियाँ कासौं कहूँ...नि:शब्द रह जावै...पर जे मौन भी ऐसो सखी री...अखियन सौं सब कहवै जैसो टेढ़ो मोहन तैसी टेढ़ी मोहन की सरकार...प्रति लोम सौं जोग करि कै भी पलहुं ना सुख पावै...
सखी री...
जे रसीली नीलमणिन सी जमुना की रसतरंगन सौं हिय सिहर सिहर सहरावै री...जे प्यारेप्यारी जू के रसीले सुरीले राग अनुरागन सौं घड़ि घड़ि घुमड़ चहुँ दिसि रस सींचन करि फेर फेर परत आवै...जे ब्यार पियप्यारि जू के रस सौं रसपगी महक महक सर्वरसन कू सर्वरूप रंग के कोकिल कपोत सुक सारि सौं *राधा* नाम जपावै...हर नुक्कड़ गलियारे सौं रसिकन की कृपारस सौं बहतीं राधानाम की रसलहरियाँ रसिक सिरोमनि स्यामसुंदर कू सरसावैं...पलहिं ना बीते कबहूँ मंगला...तें कबहूँ सिंगार पियप्यारि कै रूप सौं ढुरक ढुरक प्रिया कौ लजावै...उपरंत सखी...प्रीतिभोज की सरस सुवासित लहरियाँ प्रियतम हृदय ललचावैं...कब उषा तें संध्या बन मोहन मोहिनी अंगनि सौं रस चुवावै...सखिन मिल सबहिं मल्हार गावत...नित्यप्रति नव लाड़ लाड़ली लाल सौं लड़ावैं...पल ना परत री सौंज सुनहरी सेज अनियारी लाल लालि संग रास रचावैं...इक इक गोपी प्यारि कौ आभूसन सम सजावै...किंकरी मंजरी गलहार वेणी संग कुसुम सरोज बन प्यारी हेत सज जावैं...प्रेम सहचरि अति सुकोमल झीनी अधरन लाली और लालित्य सम प्यारी कू सजावैं...शयनकाल तें रसभरे रसमगे प्रियालाल जू गह्वर कुंजन पधरावैं...दोऊ हिलमिल सेज सजीली कू रसीलो सिंगार धरावैं...नीलम संग पीताम्बर ओढ़े प्रियालाल जू मीठी मीठी बतियन सौं नेह सुरीलो राग छेड़ छेड़ पूर्ण रैन सिहरावैं बितावैं...सखिन बैठीं कुंजद्वार तें रूप अनूप निहार ना अघावैं...भोर सौं करत रंगरलियाँ लजीली रैन गोद सुलावैं...
सखी री...प्यारी दुलारी ब्रिंदा सखी रंगमगी रैन कू गहरी सुंदर सुघर अति बनावै...
हाय...कबहूँ सखी री...जे छबिन संग ब्रिंदाबन दरस पाऊँ...कबहुँक कोरे हिय कू रंगीली कौ रसीलो प्रेम पिवाऊँ...कबहुँक जाए प्यारी चरनन सौं नेह कर प्यारे को रिझाऊँ...
री सखी ...कबहुँक हूक उठी हिय तें युगलरस सौं एकमेक होवे री... ... ...
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीकुंजबिहारिनि श्रीहरिदास !!

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