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Showing posts from March, 2018

काल क्रिया क्रम नायं, उमगि । कहत कह्यौ नहि जाय, उमगि

[3/23, 19:31] Yugalkripa sangini ju: *काल क्रिया क्रम नायं, उमगि।कहत कह्यौ नहिं जाय, उमगि।* श्रीहरिदास !! अरी सखी...भोरी सखी जु तनिक किवड़िया पर बंधे सुंदर बंदनवारों की ओट से भीतर निकुंज में नयनाभिराम रसझाँक...

प्यारी प्रियतम रूप, उमगि , संगिनी जू

*प्यारी प्रियतम रूप, उमगि।प्यारौ प्रिया स्वरूप, उमगि।* श्रीहरिदास !! रसीली रंगीली प्यारी जू उमगि उमगि प्रियतम के रूप माधुर्य पर बलिहार जाती है...जैसे बालपन में भोलाभाला शिश...

लज्जाशीला श्रीप्रिया जू भाव 2 , उज्ज्वल श्रीप्रियाजू , संगिनी जू

*लज्जाशीला श्रीप्रिया* "बूँदें सुहावनी री लागति मति भींजै तेरी चूनरी। मोहिं दै उतारि धरि राखौं बगल में तू न री।। लागि लपटाइ रहैं छाती सौं छाती जो न आवै तोहिं बौछार की फूनरी...

पदकमल नूपुर राजति

*पदकमल नूपुर राजति* हे वृषभानुनन्दिनी! हे कीर्तिदा ! आपके सुकोमल पादपदमों में सुशोभित नूपुर की मैं वन्दना करती हूँ । हे निकुंजेश्वरी !इस दासी की कोई योग्यता नहीं कि आपके चर...

लज्जाशीला श्रीप्रिया , उज्ज्वल श्रीप्रियाजू , संगीनि

*लज्जाशीला* श्रीप्रिया "तेरो मग जोवत लाल बिहारी। तेरी समाधि अजहूं नहीं छूटत चाहत नाहिंने नेंकु निहारी।। औचक आइ द्वै कर सौं मूँदे नैन अरबराइ उठी चिहारी। श्रीहरिदास के स्व...