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युगल प्रेम भाव भाग 4 , संगिनी

युगल प्रेम भाव-4

"मत मेरे दिल से पूछो ये प्रेम की कहानी
विरहा की पीर जाने जो विरहा की दीवानी
घनश्याम के विरह में ये दिल हुआ दीवाना
परवाह क्या किसी की रूठे जो ये जमाना"

आज निकुंज में कन्हैया संग सब गईयां व बालसखा कब के लौट चुके हैं।राधे जु व उनकी सखियां भी।कोई नहीं है वहाँ सिवाय कजरी और संगिनी के।कजरी आज श्यामसुंदर जु संग खूब मस्ती करने के बाद लौट कर गाँव में जाना ही नहीं चाहती।
विरहन सखी के हृदय को स्पष्ट रूप से समझने वाली कजरी आज उसे निकुंज में यहाँ वहाँ खूब दौड़ा रही है।दौड़ते दौड़ते गहन निकुंज में बहुत दूर निकल आने पर थक हार कर सखी यमुना जु के किनारे बैठ जाती है।
नीले आसमान तले यमुना जु का स्वच्छ जल आँखों को एक जगह टिकने ही नहीं दे रहा।जल में खिले कमल रंग बिरंगे पुष्प एक एक कर सटे से हुए प्रतीत हो रहे हैं।बेहद खूबसूरत लग रहे हैं।मधुर शीतल पवन से हल्के हल्के हिलते डुलते ये पुष्प एक दूसरे को प्रेम भरा स्पर्श दे रहे हैं।उनकी परस्पर घुलती महक से रोमांच हो रहा है।गहरी डूबती उठती तरंगें व कल कल का संगीत शांत निकुंज को जैसे न्यौता ही दे रहा हो।जैसे कुछ अद्भुत सा घटित होने जा रहा हो आज।
कजरी का तो कोई पता ही नहीं शायद वो लौट ही गई है पर यहाँ इस विरहन का हाल तो विचित्र ही है।भूल ही बैठी कजरी को और उसको लौटाने की बात को।अपनी सुध खोई ये वहीं निशांत कुंज के सामने ही यमुना तट पर उन कमल के फूलों को एक टक निहार रही है।कुछ ही पलों में दृश्य बदलता है।कमल के पुष्प जैसे दो दो के जोड़े में शोभायमान हैं ऐसे ही वहाँ के सभी पक्षीगण भी गठजोड़ में ही बंधे नज़र आ रहे हैं।पुरवाई की शीतलता बढ़ रही है और नीले आसमान में श्यामल श्यामल घन घिर आए हैं।
घुमड़ घुमड़ की तेज़ तरार गर्जने जैसे पुकार रही हों अपने प्रेमास्पद को।ये कारे बादल ना होकर श्यामसुंदर जु ही प्रतीत हो रहे हैं।सर्द हवाएं ठिठुरा सुकड़ा रही हैं प्रेमी को जैसे वो सिमट जाना चाहती हो गहरे प्रेम के आगोश में और सो कर बस खुद को भूल जाना चाहती हो।
दो सुंदर हंस हंसिनी के जोड़े जिन्हें देख विरह की आग आसमान में जा बिजली सी कौंधने लगी।बादलों की गर्जना और दामिनी की आँखों को चौंधिया देने वाली चमक एक दूसरे में सन कर एक होने को आतुर।घनघौर भयावह दृश्य अकेली बैठी विरहन के लिए पर वो तो इस सब में मिलन ही मिलन होता देख रही है।
कमल के पुष्पों का,हंस हंसिनियों का,अन्य वन्य जीवों का जो इधर उधर अपने संगी साथी के साथ हाथ थामे भाग रहे हैं।दूर सगन वन में वृक्षों की ओट में मयूर मयूरी का नृत्य आकर्षित कर रहा है इसे।कोयल की कुहू कुहू खुद उठ कर नृत्य करने को आमंत्रित कर रही है।पपीहे का स्वातिजल बूँद के लिए आकाश में प्यास बुझाने के लिए एक टक निहारना व अश्रु बहाना अत्यधिक उत्साह भर रहा है।आज जैसे कहीं धरा और अम्बर का ही मिलन हो रहा हो।
घन और दामिनी पूरे निकुंज का श्रृंगार कर रही है।इस आश्चर्यचकित कर देने वाली मिलन की आभा को देख जैसे ही विरहन यंत्रचालित सी वहां से उठ खुले आसमान की छांव में आकर बाहों को फैला घूमना आरंभ करती है तभी मंद मंद बरसात की बूँदें इसकी नम आँखों से घुल मिल कर एक अनवरत धार में बदल जाती हैं।लगता हैं जैसे यही आज प्रियाप्रियतम के मिलन का माध्यम बनी हो जैसे।
बरसात और और तेज हो रही है।भीगती हुई विरहन का नहला धुला कर प्राकृतिक श्रृंगार हो रहा हो जैसे।सावन में कई बरसातें जैसे आज की इस घड़ी का ही इंतजार कर रहीं थीं शायद।आज जैसे श्यामसुंदर ही मिलन करने आसमान से इस महकती धरा पर उतर रहे हों बरसात बन और श्यामा जु दामिनी बन इसके हृदय में समा गईं हैं।निकुंज अद्भुत प्रेम के श्यामल रंग में रंग गया है आज।घन का रंग श्यामसुंदर जु को लिए और गौर सुनहरी दामिनी श्यामा जु बन इस विरहनी को ही छू रहे हैं।अभी भी बाहें पसारे घूम घूम कर मूक अपने प्रियतम को पुकार रही है इसके हृदय में उतरी राधे ही हैं आज।
खुद की सुधि भुला कर बस युगल ही युगल हैं इसके युगल नयनों में।
ना जाने कितना समय बीता यूँ ही भीगते भीगते बेसुध को।अचानक गिर पड़ती है धरा पर।सामने एक वृक्ष जो इसे श्यामसुंदर जु ही प्रतीत हो रहे हैं।उन्हें देखते देखते जब धरा पर पूर्णतः झुक गई है तब उसी वृक्ष के निचले तने में श्यामा जु के चरणकमल जो थोड़े ऊंचे उठे लहंगे में से नूपुर की चमक में इसे दिख रहे हैं।छू लेना चाहती है इस सुंदरतम श्यामाश्याम जु की जादुई छवि को लेकिन वहीं धरा पर नतमस्तक हो जाती है जैसे ये धरा ना होकर प्रियाप्रियतम मिलन की सेज का ही आगोश हो जो इसे भीतर समा रहा हो।
एक शांत सब।धरा अम्बर जीव पक्षी यमुना जु का जल कमल व लहलहाते पुष्प सब शांत।
गर्जना और दामिनी भी जैसे इसके हृदय से निकल वहीं समा गई हो श्यामा श्यामसुंदर जु का रूप लेकर।मिलन की प्यास बुझाकर समाकर एक हो गई हो जैसे ऐसा एक सम्मोहन जिसने सब शांत कर दिया है अब निकुंज में।
जय जय श्यामाश्याम।।जय जय ब्रजरज।।जय जय वृंदावन।।

"कभी सुबह के कोहरे सी घनी तेरी यादें,
कभी ढलती शाम सी मीठी तेरी बातें,
अचानक से तेरा यू मेरे ज़हन में आना,
रात में सोने नहीं देना,दिन में जागने नहीं देना!!"

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