युगल प्रेम भाव -3
"यह वहम है तेरा कि मुझसे जुदा है तू,
बस इतना जान ले इस काफिर का खुदा है तू,
मैंने अक्सर तुझे तुझमें है ढूंढा,
पर आज है जाना मुझमें ही कंही छुपा है तू!!"
ऐ री सखी श्याम ना आए
जिया जर जर जाए
जाए के कहो री सखी
पी बिन नीरस प्राण ना जाए
मिलन का समय बीता
नीरस नीरस सब कुंजन दिशाऐं
नीरस राधिका प्यारी जु का मन
नीरस भया सगरा मधुबन
नीरस आज मयूर कोकिल
नीरस ही बसे सब सखीगण
बाट निहारूं इत उत दौड़े नीरस नयन
रोवत रोवत सूख गई अखियाँ
नीरस आज यमुना जल
नीरस बहे पुरवाई
नीरसता डाल पात छाई
हिलोर सोई नीरस हुई बेल लता सब
मधुरता ना भाए चाँद की
नीरस हुई शीतल चांदनी
मनमोहन श्यामसुंदर ना आए
इत ढूँढूं उत जाऊँ
कित हूं ना मैं सुख चैना पाऊं
निरख निरख श्यामा जु की व्यथा
हृदयुद्गार कौन कू सुनाऊं
बैठ प्रिया जु चरणन में
धीमे धीमे पदकमल सहलाऊं
छूते ही श्यामा जु सिहर गईं
देख मोहे इक नज़र
फिर नयन फेर लई
खोई खोई पावै सखी सुख
ना न कहे ना कहै कुछ
देख लाली की प्रेमवच्छल अखियां
नम नेत्र से सखी मुस्काई
श्यामा जु फिर हुईं सपंदित
मंद मुस्कन दे ढक लई अखियां
रोम रोम कम्पित हुआ
श्याम मिलन को अंग अंग तड़पे
देख सखी के नयनो आंसु एक ढरका
छू कर पदपंकज सरोज निज
श्यामा जु को फिर झकझोर गया
प्यारी श्यामा जु अब बोल उठीं
बोल सखी कब पिया सों तेरा मिलन हुआ
तेरी नम श्वासों के रूदन में श्याम जु का रंग घुला
नयनों के इस अश्रुबूंद में छवि श्याम की क्यों पाऊं मैं
क्यों तेरे छूने से बार बार सपन्दन मुझको हो रहा
जलचर नेत्र अधरों पे मुस्कन
देखा श्याम को कहाँ तूने बता
"कोयलीया कूक के कलेजा करे टूक टूक
दूक दूक दादुर दुखावे प्राण खवे री
सूख सूख पिया बिन पिंजर भयो शरीर
पियु पियु बैन पापी पपीहा सुनावे री
कछु ना सुहावे मोहे मदन जड़ावे आली
देखी के काली घटा घनश्याम याद आवे री"
सुन कर प्यारी जु की आसभरी व्यथा
पहले चुप रही फिर लगा देऊं राधे का मन बहला
कुछ ऐसा श्यामसुंदर जु मुझमें भर दो
हर लूं सारा संताप विरह
धीर बंधा दूं श्यामा जु को
आओ कि आकर जाओ
अधीर वाणी में समा
सकुचा कर कुछ पल बोल उठी
अरी प्यारी मतवारी भोरी राधे जु
क्यों आपने ये विरहन वेश धरा
श्यामसुंदर जु तो हैं कण कण में
इन यमुना जलचरों में
हर डाली हर पाति में
देखो वे इन कुंजों में
मधुबन की हरियाली में
श्यामा श्यामा रहे हैं गा
पुरवाई में चांदनी में
घुल कर देखो दे रहे
तुम्हें प्रेमपूर्ण स्नेह भरा
देखो यहां हैं आपके नयनों में
अधरों से पराग चुरा रहे
हृदय प्रांगण में वंशी बजाते
नृत्य करते दे रहे आपको उत्साह
अरी प्यारी जु
देखो इन सरोवर सरोज में
इन भंवरों में वे ही हैं
देख देख पुलकित होते
इन हंसों की जोड़ी में वे हैं
मयूर कोकिल वे हैं
गा उठें सब गर श्यामा जु
तुम दो इक बार मुस्करा
सब सखियन में भरे पड़े वे
गा दो जो तो नाच उठें वे
देखो मेरी भोरी श्यामा जु
आपकी सुमधुर श्वास में वे
महक बन कर बह रहे
केशों के कुंडल में पवन बन
कपोलों को आपके चूम रहे
नभमंडल के तारों को ला
वे ही तो वेणी और माँग में सज रहे
सावन की घणघोर घटा में
वे ही तो नाम राधे ले लेकर गरज रहे
बारिश की बूंदों में भर कर
देखो श्यामा जु वो बरस रहे
कभी वे चरणन को पखारते
कभी सर्द पवन बौछारों संग
आलिंगन देते लिपट रहे
पीहू पीहू से कोकिल मयूर सा
मधुर गीत वे ही तो गा रहे
लता पताओं की हरीतिमा से
रंग प्रेम के बन वही तो टपक रहे
अरे मेरी प्यारी भोरी जु
आप तड़पो तो वे भी तो
चहुं दिशाओं में भर कर खुद को
आप पर नेह की वर्षा कर रहे
आप जो हंसदो तो श्यामा जु
झूम झूम कर बाहर प्रकृति से आकर
तुरंत आप से वे मिलें
आओ श्यामा जु नम नयनों से भी
सुरख अधरों से लाल प्रेम का रंग झरे
आओ पुकारें श्यामसुंदर जु को
वे तो हैं हम में ही भरे
होने को अवतरित वे
खुद ही इंतजार कर रहे
"मोरे मन में उठी है उमंग रे
ओ मोरा फड़के है बायाँ अंग रे
मोरे मन की मुरलिया पे
हौले हौले सुर घोले घोले
कोई गा रहा
मोरी अटरिया पे कागा बोले
मोरा जिया डोले कोई आ रहा है"
सुनकर सखी की भोली बतियां
श्यामा जु मुस्कराने लगीं
हाँ तू कहती है सत्य
तेरी भोली बातों में श्याम जु के
अधरों की है मिसरी है घुली
कहत कहत प्रिया जु उठकर
हर शै में श्याम जु को
महसूस करने लगीं
जानत हैं वो सखी के विरह दशा
फिर भी वो राधे जु को बहला रही
झुमती गातीं वो रोती सखी के
आकर समक्ष खड़ी हो गईं
सखी पलकें झुका श्यामा जु के
चरणन लगी
बैठ प्यारी जु ने सखी अंक लगा ही ली
अब रोने लगी वो हुई तार तार
हृदय में श्यामा जु उतरने लगीं
बही अश्रुधार नयनों से
श्यामा जु के हृदय लग
विरहन खुद भी बहने लगी
आंसु पोंछ श्यामा जु के
वो खुद अखियाँ भर भर नीर बहाने लगी
बैठा कर श्यामा जु को कदम्ब के पट पर
चरणन को उनके धोने लगी
इतने में श्यामा जु ना जाने कैसे
वंशी हाथ में लिए बजाने लगीं
देख देख सखी श्यामा जु को मोहन को
कण कण से प्रगटाते हुए
हर कहीं मनमोहन श्यामा जु को पाने लगी
हाथ जोड़ वो बैठी है नेत्रों से बहने लगी
इत उत जित देखुं श्याम जु को
संग में हैं राधे जु खड़ीं
पलट कर जब देखा श्यामा जु को
दोऊ एक देह एक प्राण हुए
रूह रूह में समाने लगी
निरख कर श्यामाश्याम जु को एकरूप
अखियों में बसाकर सुंदर छवि
सखी मंद मंद मुस्काने लगी
लीलाधर की लीला न्यारी
हुई दूर सब विरह वेदना
मिलन की घड़ियों को
हृदयांगन में सजाने लगी
आप तो हो संगिनी श्याम जु की
फिर क्यों राधे आप उनसे भिन्न दिखने लगीं
समाई हो रग रग में उनकी
बहती प्रेम बन लाल रंग उनके तनप्राणों में ही
वे देह तो आप मन हो उनका
श्याम श्यामा
और श्यामा श्याम जु को
हर दिशा से मधुर संगीत सा गाने लगी
"तुम सावन की रिमझिम हो,बसन्ती शीत के जैसी,
हर इक लब पे तेरे चर्चे, तु है संगीत के जैसी,
तुम्हें छूकर हवाएँ जब, भी मेरे पास आती हैं,
तेरी खुश्बू मुझे लगती, कान्हा के प्रेमगीत के जैसी!!"
Comments
Post a Comment