युगल प्रेम भाव-1
"बरसात भी नहीं पर बादल गरज रहे हैं,
उलझी हुई हैं जुल्फें, हम उलझ रहे हैं,
मदमस्त एक भौंरा क्या चाहता कली से,
तुम भी समझ रहे हो हम भी समझ रहे हैं !!"
श्रावण मास और प्रेमियों की दूरियां बिन वजह ना चाहते हुए भी किसी के लिए मिलन तो किसी के लिए विरह की घड़ियाँ।
नहीं लगता मन ना हिए चैन पाए।
ना विरहगीत ना ही मधुर संगीत कोई भाए।
ना कुंज ना कुंजन की महक ही सुहाए।
जाए तो जाए कहाँ विरहन
राधे जु के भाव भी अकुलाए।
बैठी तन्हा सोच रही
कैसे पी से मिलन होए।
कब मेघ बरसे कब झूलन माधव झुलाएं।
कटें ना दिन ना रतियाँ
चुभती हैं सखियों की बतियाँ।
सेवाकुंज की राह तके
थक गई जगी सी अखियाँ।
सखी एक श्यामा जु संग आए बैठी
हाथ में वस्त्र मोरपंख रंग
राधे देख अकुलाने लगी
पुष्पों से बैठी सजाने लगी
देख श्यामा पीत वर्ण सजनी
दौड़ी आईं ले पी की पतिया।
पूछन लगी सखी सों
का करत हो
प्रीति के रंग में रंगी
क्या मोहन को मिल कर आई?
सखी ने कंठ लगाई राधा
असुवन संग काजर रेख बही
ना राधे तुम सों मैं
हिए की बात करन हूं आई
ना देख सकुं तुझे यूँ आकुल
क्यों तू ये विरह वेस धरे
आए सजा दो ये श्याम पीताम्बर
मोरपंखा रंगा महका दो
छू कर ये पुष्पाविंत केशर चंदन
तेरे हस्त कमल लिपटते ही
ये लहरा जाएगा मधुबन मधुबन
तब ओढ़ इसे जब बहकेगें तेरे कदम
तो हे प्यारी आएंगे तेरे श्यामसुंदर
बरसेंगे जब कारे बदरा
तो रोक ना पाएंगे खुद को प्रियवर
तेरी महक होगी पुरवाई में
श्वास दर श्वास उड़ते आएँगे श्याम बन भंवर
पैंजनियों की मधुर ध्वनि से थिरकेंगे जब धरा और गगन
नाचते आएँगे श्याम मयूर बन
तू जुगनू बन राह दिखाना
वो आएँगे रौशनी की नईया पर सवार होकर
तू हृदयंग्म वीणा के तार छेड़ना
वो आएँगे वंशी की धुन संग
आओ प्यारी सखियो आओ
आओ संग संगिनी के राधे को सजाओ
आओ मिलन की कलियाँ खिलाओ
बिरही श्रावण को मिलन सेज बनाओ
आओ इन घड़ियों को यूँ ना गंवा कर
मधुर मधुर पुकार प्रिय को लगाएँ
निष्ठुर नहीं वो प्रेम धुन में हुए मग्न
आएँगे दौड़े राधे से होगा सप्रेम मिलन
झूला झुलाकर नेह बरसा कर
सखियों को होगा सुघड़ सुखांनद
"सावन का महीना, झुलावे चित चोर,
धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
मनवा घबराये मोरा बहे पूरवैया,
झूला डाला है नीचे कदम्ब की छैयां।
कारी अंधियारी घटा है घनघोर,
धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
सखियां करे क्या जाने हमको इशारा,
मन्द मन्द बहे जल यमुना की धारा।
श्री राधेजी के आगे चले ना कोई जोर,
धीरे झूलो राधे, पवन करे शोर।
मेघवा तो गरजे देखो बोले कोयल कारी,
पाछवा में पायल बाजे नाचे बृज की नारी।
श्री राधे परती वारो हिमरवाकी और,
धीरे झूलो राधे पवन करे शोर।
सावन का महीना झूलावे चित चोर..........।।"
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