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श्रीनवद्वीप गौर धाम महिमा अमिता दीदी

*श्रीनवद्वीप गौर धाम महिमा*

जय जय जय श्रीनवद्वीप धाम।
गौरनिताई नाम जहां गूँजे आठोंयाम।।1

गौरचन्द्र की लीला भूमि वृन्दावन स्वरूप।
युगल श्यामाश्याम यहाँ धरे गौर कौ रूप।।2

सीतानाथ अद्वैत प्रभु किये हरि सौं मनुहार।
कलिताप हरण कौ प्रभु लेयो आप अवतार।।3

जन्म लियो विप्रवंश में निमाई भयो नाम।
शचिनन्दन सुत भ्यै गौरांग वितरित किये हरिनाम।।4

फाल्गुनी पूर्णिमा भई सूर्यग्रहण जब आय।
हरि हरि की ध्वनि जब हर कोई मुख सौं गाय।।5

प्रकटे हरि आप ही चाखन भक्ति कौ स्वाद।
हरि हरि नाम सुन हृदय भरयौ आह्लाद।।6

बाल रूप लीला किये बाल गोपाल समान।
नदिया बिहारी निमाई भ्यै नदिया के उर प्राण।।7

हरि हरि कौ नाम सुन हँसे बालक रोना छोड़।
हरिनाम की लग गयी सकल नादिया होड़।।8

गोद लेह लेह लाड़ करैं नारी नदिया की सारी।
जिस भाँति गोपी प्रेम रह्यौ कृष्ण जन्म अवतारी।।9

हरिनाम कौ स्वाद लये विशम्भर कौ भ्राता।
गौर नाम उच्चरण सौं सदा कलिताप नसाता।।10

बालरूप लीला अनेक कीन्हीं कृष्ण समान।
गंगा तट क्रीडित हरि सोई कृष्ण यमुन समान।।11

हरे कृष्ण कौ नाम सदा मुख राखै हरि गौर।
हरिनाम जपत साँझ भ्यै हरिनाम जपै भोर।।12

गंगा तट नवद्वीप भूमि बनी भक्ति कौ आधार।
गौर चन्द्र जन्म भयौ कियो कृष्ण प्रेम प्रचार।। 13

हरे कृष्ण कौ नाम सदा मुख राखै हरि गौर।
हरिनाम जपत साँझ भ्यै हरिनाम जपै भोर ।। 14

ग्रह त्याग प्रस्थान कियो लेयो विशम्भर सन्यास।
गौर वर्ण निमाई सौं ही राखी सगरी आस।।15

विद्या अध्ययन सौं रोक लहै शचिनन्दन कौ दोय।
विशम्भर की भांति सौं ज्ञानी बनै न कोय।।16

मात पिता कौ आस एकै गौर सौं निशदिन।
सेवा अंत समय करै स्वास आवै न गौर बिन।।17

लीलाधर की लीला कौ समझ सकै न कोय।
मनमानी लीला करै हरि प्रेम वश होय।।18

प्रकांड पण्डित गौर भ्यै नदिया कौ सरताज।
सकल बुद्धिमत विद्वान भी खावैं इनसौं लाज।।19

बिष्णुप्रिया अर्द्धांगिनी दौऊ नदिया के भ्यै फूल।
अधिक समय न रह सक्यो प्रेम दोऊ अनुकूल।।20

गया गये जबहुँ श्राद्ध कौ लग्यो कृष्ण प्रेम कौ रोग।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण का गौर तबहुँ साधयो जोग।।21

विरहणी कौ आवेश होय पुनि पुनि करै क्रन्दन।
हा कृष्ण हा कृष्ण कह रोवै व्याकुल शचिनन्दन।22

सगरौ बुद्धि ज्ञान सब बहयो प्रेम कौ सँग।
कृष्ण विरहणी गौर भ्यै लग्यो भक्ति कौ रँग।।23

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कह होवै गौर सदा उन्मत्त।
नाचे हाथ उठाये दोऊ नीर बहावै शचिसुत ।।24

कृष्ण प्रेम कौ रोग लग्यो उठे हिय जब पीर।
हा कृष्ण हा कृष्ण कह गौरा भ्यै अधीर।।25

हरिनाम प्रसार कौ ल्यो हरि गौर अवतार।
लोक लोकाई तज दण्डी भयो गौरा सरकार।।26

ग्रह त्याग कियो जबहि शचि मैया के गये प्राण।
कौन भाँति दशा निरख सकै बिन सुत मृतक समान।।27

बिष्णुप्रिया गौरांगी कौ दियो हरि नाम उपदेश।
भक्ति प्रसार कौ जन्म लियो हरन कलिताप क्लेश।।28

बड़ो त्याग शचि देवी कौ बिष्णुप्रिया अति धन्य।
हरिनाम के सार कौ जिन जीवन कियो अनन्य।।29

मूंड मुड़ाये फिरै धर सन्यासी कौ वेश।
विरहणी राधा भाव का भारी होय आवेश।।30

शचि मैया आदेश होय पुरी देश करौ बास।
वृन्दावन अति दूर होय न पुनि मिलने कौ आस।।31

सकल देश भृमण कियो ,कियो हरिनाम प्रचार।
कृष्ण प्रेम देय जीव सकल कियो भवसिन्धु पार।।32

नाम की महिमा बड़ी कलियुग नाम कौ सार।
यज्ञ योग भक्ति सकल बनै हरिनाम सौं पार।।33

भक्तन कौ अवतार लेह कियो प्रेमाभक्ति प्रचार।
हरिनाम जिव्हा सदा नयन बहे प्रेम रसधार।।34

झारखंड वन्य जीव कौ दियो कृष्ण प्रेम कौ दान।
करुणामयी अवतार न कबहुँ भयौ गौरा हरि समान।।35

करुणा के अवतार गौर हृदय श्रीयुगल विलास।
युगल केलि हिय भर रहै मुख राखै नाम उल्लास।।36

नित्यानन्द अवधूत होय गौर प्रेम आधार।
भजे निताई नाम जो करै गौर हरि निस्तार।।37

नित्यानन्द गौर मिल कियो भक्ति कौ प्रचार।
नाम लेह नवद्वीप कौ हिय बहै रसधार।।38

नवद्वीप की भूमि होय वृन्दावन सौं अभिन्न।
गौर लीला हित युगल ही धारयो रूप जिन।।39

कौन भाँति श्रीराधिका लहै भक्ति प्रेम कौ स्वाद।
राधाहिय राधाकांति धर कृष्ण हिय आह्लाद।।40

राधाकृष्ण मिलित वपु वर्ण धारयो गौर।
नाम धरयौ गौरांग तबहुँ भक्तन कौ सिरमौर।।41

बहु भाँतिन लीला करै नवद्वीप और भूमि पुरी।
सकल देश भृमण कियो घूमे हरिनाम की धूरी।।42

जगाई मधाई दस्यु दोऊ कियो आपहुँ उद्धार।
कृष्ण नाम कौ प्रेम देय हरि गौर रूप रहे धार।।43

हरिनाम प्रचार कियो गौड़ देश अरु बंग।
कृष्ण भक्ति की प्रत्येक हृदय उठती रहै तरँग।44

हरिदास यवन कौ कियो हरिनाम नाम आचार्य।
जैसी आज्ञा हरि करै भक्त करै शिरोधार्य।।45

रूप जीव सनातन रघुनाथ दौऊ भट्ट गदाधर ।
षड गोसाईं मिल कियो गौड़ीय रस प्रखर।।46

नाम भजन रसरीति कौ दियो सकल आदेश।
लुप्त वृन्दावन प्रकटायो रह्यौ भक्तन कौ वेश।।47

नित्यानन्द अवधूत कियो दण्ड गौर कौ भँग।
हरे कृष्ण नाम की गौर हिय जब बाढ़ै अति तरँग।।48

सकल देश भृमण कियो हरिनाम प्रचार के हेत।
हरि हरि बोल आपहुँ हरि कृष्ण प्रेम लुटाय देत।।49

बढ्यो पाखण्ड चहुँ ओर भक्ति कौ विकृत रूप।
हरिनाम कौ सार दियो गौरा चिंतामणि अनूप।।50

करुणा प्रेम राधा हिय राधा कान्ति लिए धार।
गौर हरि गौरांग रूप भ्यै युगल प्रेम अवतार।।51

ग अक्षर गोविंद सौं राधा सौं लियो र।
गौर नाम हरि धार कर करै प्रेमाभक्ति प्रसार।।52

निताई नित्यानन्द होय गौर प्रेम आधार।
नाम निताई भजे ही हिय होय आनन्द अपार।।53

निताई कौ धन गौर हैं साँचो निताई धनवान।
गौर प्रेम लुटावते कह हरि ,हरि प्रेम दे दान।।54

भज निताई गौर राधेश्याम साँचो प्रेम आधार।
गौर निताई नाम सौं मिले प्रेमानन्द अपार।।55

कृष्ण नाम जपत जपत बनै अपराध अपार।
कृष्ण प्रेम न मिले जन्म जन्म आवै हिय बिचार।।56

ऐसो करुणामयी अवतार गौर न अपराध बिचार।
नाम गौर लेह उदय होय युगल प्रेम रसधार।।57

षड गोसाईं दियो जबहि करन भक्ति कौ प्रसार।
गौर भक्त वृन्द सबहि हिय करुणा प्रेम अपार।।58

नाम गौरांग लेह नाचत शिव भोला मुरारी।
पूछत पार्वती कौन कारण सगरी दशा बिगारी।।59

कौन बूटी पी भयौ हिय ऐसो उन्मत्त।
गौर नाम प्रिय कर्ण तबहुँ दियो शिव शम्भू प्रदत्त।।60

नाम गौरांग सुनत ही पार्वती ऐसो बौराई।
गौर भूमि नदिया कौ नमन कियो सिरनाईं। 61

शचि मैया आदेश कौ गौर हरि सिरनाय।
जगनाथ पुरी माँहिं लियो आवास बनाय।।62

विरहणी राधा आवेश होय निरख जगन्नाथ कौ रूप।
राधा हिय राखै कृष्ण गौरा भयौ स्वरूप।।63

जगन्नाथ यात्रा समय कियो उन्मादी नृत्य।
विरहणी भाव राधिका रूप बन्यो सब कृत्य।।64

हा हा प्राणनाथ कहे नयनन झरावै नीर।
निरख छवि जगन्नाथ पिय विरहणी भ्यै अधीर।।65

रे मन तज सब वासना भज लेय नाम श्रीगौर।
प्रेमाभक्ति उदय होय जीवन प्रेम विभोर।।66

हरिनाम की नाव बनाई आओ बैठो भजो रे भाई।
नाम की ही लगे उतराई नाम जपे हो पार लगाई।।67

कोई भेद रहयो न भाई जाति वर्ण की न अधिकाई।
नाम कृपा सबपर सुखदाई नाम रूप अवतार रे भाई।।68

पतितन को भी पार लगाई काल, स्थान को रहो भुलाई।
हरिनाम सदा ही सुखदाई गाओ दोऊ भुजा उठाई।।69

कलियुग में हरिनाम सहाई नाम मे ही हरि कृपा समाई।
प्रेम रँगीली भक्ति दे लुटाई गौर रूप भये राधा कन्हाई। 70

गौर नाम सहज अति भाई करुणासिन्धु दिए करुणा लुटाई।
बाँवरी नाम कृपा से गाई  गौरहरि होय आप सहाई।।71

*श्रीगौर भूमि महिमा*

श्रीनवद्वीप श्रीवृन्दावन सौं अभिन्न।
नाम लेत सब पातक होय छिन्न।।72

श्री श्री नवद्वीप कौ पूर्ण नाम ।
करुणामयी गौरांग कौ धाम।।73

श्री वृन्दावन प्रेम रस खान।
श्री नवद्वीप देवे प्रेम कौ दान।।74

रूप गौरांग लिए हरि धार।
श्री वृन्दावन का कियो प्रसार।।75

श्री नवद्वीप धाम देश बंग।
नाम लेत हिय उठत तरँग।।76

दण्डवत नमन करै एक बार।
पावै सकल प्रेम भक्ति कौ सार।।77

श्री नवद्वीप धाम अति गुप्त।
दरस किये पावै शक्ति सब सुप्त।।78

श्री नवद्वीप जो रटन लगावै।
निताई गौर प्रेम सहजहि पावै।।79

जय नवद्वीप भूमि देस बंगाल।
प्रेमाभक्ति सौं करै निहाल।।80

जय जय गौर भूमि निज धाम।
हाथ जोरि नित्य करौ प्रणाम।।81

कौन विधि बाँवरी करै बखान।
श्री गुरु कृपा सौं सहजहि निदान।।82

रसना कोटि मोहे नाथा दीजौ।
श्रीधाम यश लिखन समर्थ कीजौ।।83

प्रभु नाम रूप लीला अरु धाम।
इन्हीं सौं रहै शेष सब काम।।84

जिव्हा उच्चरै क्षण क्षण नाम।
ऐसो नवद्वीप प्रेम कौ धाम।।85

जय गौरा जय जय गौरधाम।
दोय हाथ उठाय कीजौ प्रणाम।।86

जहाँ विलसत गौर हरि आप।
जिव्हा हरे कृष्ण कौ जाप।।87

करुणामई निताई गौर दयाल।
प्रेमाभक्ति दे करै निहाल।।87

पात पात जो श्री नवद्वीप धाम।
भ्यै उन्मादित सुन हरि कौ नाम।।88

श्री नवद्वीप प्रेम रस भूमि।
नयनन सौं राखूँ नित चूमि।।89

मस्तक धारण करूँ रज श्रीधाम।
गौरा गौर जिव्हा सौं उच्चरुं नाम।।90

जय श्रीनवद्वीप जय गौरधाम।
निशिबासर ही करूँ प्रणाम।।91

युगल भक्ति कौ सार ही गौर।
श्रीनवद्वीप जपै रहे न थोर।।92

पावन गौड़ देश भूमि नवद्वीप।
पातक हरणी बहे गंग समीप।।93

गंगा हरि सौं करि मनुहार।
यमुना भूमि बहे ब्रज रसधार।।94

गंग तट कीजौ हरि निज लीला।
गंगा तट गौर धाम रसीला। 95

जेहि लीला कृष्ण करै यमुना तट।
सौं भाँति लीला गौर गंगा तट।।96

राम कृष्ण गौर होय एक रूप।
नाम प्रेम भक्ति कौ सब रूप।।97

मति थोरी बाँवरी बुद्धि हीन।
नाम भजन रस रीति सौं हीन।।98

नाम गौर कौ सर्वसुख हारी।
स्वासा स्वास रसना सौं उच्चारी।।99

नाँहिं कोऊ ज्ञान न भजन समर्था ।
नाँहिं कोऊ बल नाँहिं कछु अर्था ।। 100

नाम गौर की पकराई गुरु डोरी।
श्रीगुरुदेव कृपा सौं महिमा जोरी।। 1

जय गुरुदेव जय गौर जय नवद्वीप।
मन चित्त देह सदा रखियो समीप।।2

पुनि पुनि महिमा धाम कौ गाऊँ।
श्रीगुरु गौर कृपा सौं चरण रज पाऊँ।।3

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