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*आनंद कौ परमानंद*
"हरि के अंग कौ चंदन लपटानौ तन तेरे देखियत जैसे पीत चोली.....
मरगजे अभरन वदन छिपावति छिपै न छिपायें मानौं कृष्ण बोली...."
श्रीकुंजबिहारी श्रीहरिदास...जयजयश्री सरकार जू कौ अद्भुत आनंद सखी जू...मुखकमल पर ऐसो रस...ऐसो नेह छलकि छलकि पड़ै...कि बखान कियौ ना जाए और ना कियौ तें अंतर बिच अकुलाए....
आज ही तो निहार पाई री...श्रीयुगल की भोर समै की विचित्र छबि...
जहां भोर कौ सूरज ना उग सकै और ना चंद की शीतलता प्रेम की शीतल छाँव सौं ढल सके ...
अति भोर में प्रियतम प्रिया जू कौ मिलनोत्सव और उस मिलनोत्सव की रसभरी रसमगी रसछाँव में भीगी भींजी सी परमानंद में डूबी गुरुवर सहचरिगण सखियन...अहा ....!!
युगल कौ आनंद तो अतृप्ति की चादर औढ़े निकुंज महल की तरुनाई सुरभित सिज्या ही बखान कर रही...और उस पर जब भीतर प्रवेश कर सखी ने रात्रि के पुष्पों की चादर पर भोर की कलियाँ खिला दीं तो... ... ...
आश्चर्य ना...वहाँ सूर्य का प्रवेश ही नहीं...रैन भई ते सखी रात्रि के गहरे रंग में सुरभ सुभग लाल हरे पुष्पों से कुंज सजातीं तो भोर भई तें उन्हें गहराई से उजागर कर श्वेत गुलाबी सुघड़ पुष्पों से श्रृंगारित करतीं...निभृत कौ सूरज और चंद्र तो स्वयं सखी हिय ना सखी जू...जिसे वे नित नव रसीले रंगभरे पुष्पों से सजातीं ...
तो भोर भई ते कुंज कौ श्रृंगार उज्ज्वल श्वेत सुरभ गुलाबी पुष्प वल्लरियों से...अहा... ... ..
लो...हो गई ना भोर...
और युगल... ... ..
युगल छबि...हाय... ... ...
आनंद कौ परमानंद...युगल सम्पूर्ण रैन गहरे रंग की पुहुप वल्लरियों में सुरभित ...स्पंदित...रंगभरी जगमगी...रगमगी...कोमल...सुशीतल...रसीली बतियाँ रतियाँ सजाते रहे...भोर भई ते ज्यौं ही पुष्प वल्लरी उज्ज्वल परमानंद में डूबी सखियन ने सजाई...और निहारी ...तो उनके मुखकमल खिले हुए से परमानंद की अनुभूति से श्रृंगार धर प्रियप्रिया जू की रूपमाधुरी का पान करते...लाल अधरों से झिलमिलाती श्वेत दंतावलियों से झर झर कर नयनों से ही रसचित्रण का वर्णन करने लगीं...
जयजयजू के मुखकमल की अद्भुत आभा प्रभा...रस झर रहा...अनुमान लगा रही सखी...जाने आनंद में डूबे परमानंद को ही पा गए...अहा... !!
श्यामसुंदर व श्यामा जू दोनों एक ही पीताम्बर में अटपटे से उलझे भये...और उनकी रूपमाधुरी कौ अनुपम रस छलक रहा लाल सुभग सुंदर नुकीले रसीले छबीले नयनों से...(जो सगरी रैन जागे रहे...)कजरारे श्यामल सुंदर सुसज्जित अधरों पर...(जो अघाते रहे रससार निशा परयंत...)
जयजयश्री यह रसीली युगल पर पुनि-पुनि बलिहार जाते...उनके नयन युगल रसछबि कौ पान कर चमक रहे...
श्रीयुगल के करों व कटि कौ सिंगार...आधो सौ...पूरौ भयो...दोनों ने एक एक कर में कंकन धारन किए और एक एक चरण में पायल...अहा...वेणी और अलकें...दोऊ परस्पर श्रृंगार हुईं...
अटपटे बैन...अटपटे सैन...और परमानंद कौ प्राप्त जयजय जू के अधर से दंतपंक्ति निहार निहार ना अघाती युगल की अद्भुत युगलबंदी को...एक रस दो प्राण हुए दरस दे रहे प्यारे प्यारी जू...अहा...
जयजयश्री बलिहार...रसछबि पर और जयजय जू की रसीली सखी स्वरूप छलछलाती आनंदाकृति रंगपगी छबि पर बलिहार सखी...
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
जयजयश्रीयुगल !!
*कृपा कर किसी को ना दें*
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