*प्रीतिहिंडोरा*
जब कृपा वर्षण से भरे हृदय पर परस्पर कृपाओं की घर्षण होती है तब कृतज्ञता की वर्षा होती है
और क्षण-क्षण बलिहार होकर झूम रहा होता है
वही कृतज्ञ लता श्रृंगारित होकर प्रीतिहिंडोरा हो जाती है
एक बार श्रीयुगल प्रियालाल को लेकर झूमा हुआ हिंडोरा उनकी मधुता की सुगंध से मुक्त नहीं हो सकता
रसाभार से भर रस देने को आकुलित रसीले हिंडोरे के सरस रसालाप नित्य-लय होकर जीवन को ही हिंडोरावत झूलता हुआ दर्शन करते है । बलिहार होते श्रृंगारों की बलिहार होती उल्लसित रसवर्षिणी झाँकियाँ। तृषित । जयजय श्रीश्यामाश्याम जी ।
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