*अजहूँ कहा कहति है री.....* *.....तू ही जीवन तू ही भूषन तू ही प्रान धन......* *कृष्णकर्णिका* 'कृष्ण तन कृष्ण मन कृष्ण ही है प्रान धन ' ,,,, यही शब्द गुंजायमान थे हृदयस्थ .....तन मन धन ....तन मन से तो भलीभाँत...
*श्रम जल कन नाहीं होत मोती* *प्रीति वल्लरिका* पुष्पों को निहारो सखी ....अनंत काल से अनंत तक यूँ ही सुरभित कृपावर्षा में भीगे भीगे सौरभ से भरे सौरभ ही बिखेर रहे ...भावसुमन...अहा ...रसिक ...
*तू रिस छाँड़ि री राधे राधे* *वाणी पाठ क्यों ???* भक्ति महारानी जू मानिनी भई सखी जू ,,,, उसे मनाना है उसे पाना है,,,, उसे ,,, जिसके लिए ये सगरे खेल सजे हैं ,,, लीलाएँ सजी हैं ।। हम अक्सर चाहते उस...
*राधे दुलारी मान तजि.....* *मधुर प्रतिकूल आनुकुल्य* Do not share अद्भुत वैचित्य भरा जीव के हिय में परंतु उसे ज्ञात नहीं यह वैचित्य जो नित्य रसानंद पाना चाहता है वह इधर उधर दौड़ लगाए हुए उस व...
*इत उत काहे कौ सिधारति आँखिन आगे.....* DO NOT SHARE कितना चंचल , कितना भोलापन , कोमल है ना यह मन.... कितने ही एकाग्रता के मंत्र पढ़ाए सिखाए जावें इस अति कोमल मन को.... कितना ही बहलाया फुसलाया । परंत...