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अमितानुरागिणी वेणु वेणु जय जय वेणु जय श्रीवेणु , बाँवरी जू

*अमितानुरागिणी वेणु वेणु जय जय वेणु जय श्रीवेणु*

     श्रीवेणु जो अपने रव रव से श्रीहित सुधा, प्रेम सुधा पिला रही है, इस वेणु के भीतर ऐसा दिव्य रस भर रहा है श्रीस्वामिनी जु का नाम। श्रीराधा नाम सुधा प्रियतम इसे भर भर पिला रहे हैं, इस वेणु नाद से निनादित होकर श्रीनिकुंज का कण कण वेणु मय हो रहा है, रस मय हो रहा है, हित मय हो रहा है, अनुराग मय हो रहा है।ऐसे अमित अनुराग को पिलाने वाली है यह श्रीवेणु। सभी राग रागिनी का मूल इसी श्रीवेणु नाद में समाहित है । जिस प्रकार श्रीस्वामिनी श्रीराधा जु का नाम प्रियतम के रोम रोम को आह्लादित किये हुए है , वही आह्लाद रव रव में प्रकट हो रहा है, बिखर रहा है, प्रसारित हो रहा है, स्वयम भी हितमयी होकर सबको हितमयी स्वरूपः दे रहा है।

   श्रीराधा जी के चरणों का अमित अनुराग प्रदान कर रही है वेणु, श्रीप्रियतम को , सखियन अलियन को, श्रीनिकुंज के कण कण को। ऐसा अनुराग जो नित्य नव नव होता जाता है, नित्य वर्धित होता जाता है। श्रीवेणु श्रीस्वामिनी जु की सेवा प्रदान करने का सामर्थ्य रखती है। हित रस जैसे जैसे इस वेणु नाद से गहन अति गहन होता जाता है, वर्धित होता जाता है, पुष्ट होता जाता है, वैसे ही प्रेम का वर्धन होता हुआ सेवा की भावना को पुष्ट करता है। जो स्वयं सेवा में हो वही सेवा प्रदान करने की सामर्थ्य रखता है। यह श्रीवेणु ही हित सजनी रूप में श्रीप्रिया जी की सेवा लालसा को उदित करती है, तथा प्रदान करने का सामर्थ्य भी रखती है।

   श्रीप्रियतम के भीतर कुछ है तो केवल श्रीप्रिया, जो उनके रोम रोम में समा रही है। श्रीवेणु नाद द्वारा मनहर उसे रव रव में स्वयम भी पी रहे हैं सभी को उसका पान करवा रहे हैं। स्वयम भी आह्लादित हो रहे हैं तथा कण कण को आह्लादित कर रहे हैं। भीतर से श्रीराधा नाम ही नाद रूप में प्रकट हो सभी को पिलाया जा रहा है। श्रीस्वामिनी जु का प्रेम , श्रीस्वामिनी जु का सहचर्य प्रदान किया जा रहा है।श्रीयुगल की नित्य संगिनी , प्रेम रूपिणी, प्रेम प्रदायिनी यह हित रूपणी श्रीवेणु श्रीनिकुंज के कण कण में रसमयता का प्रसार कर रही है। श्रीप्रियतम अपनी साधना में श्रीवेणु द्वारा ही श्रीस्वामिनी जु को भज रहे हैं, तथा श्रीवेणु हितमयी रूप होकर श्रीप्रियतम के इस भजन को , इस प्रेम को वर्धित करती हुई उन्हें भी अमित अनुराग प्रदान कर रही हैं। इस वेणु नाद के भीतर प्रकट श्रीप्रिया नाम ही इस वेणु का , हित का मूल मंत्र है, जो झँकृत हो होकर इस रस को पी और पिला रही है। *अमितानुरागिनी वेणु वेणु जय जय वेणु जय श्रीवेणु*

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