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हा...हा...करत ना देति , सँगिनी । पीताम्बर-मुरली लीला ।

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हा...हा...करत ना देति...

सखियन संग प्राणप्रियतमा भोरी किशोरी जू सिंगार कुंज में रसहिलोर में सिंगार धरातीं रसीली सखियन की कोमल छुअन से स्पंदित सिहरित हो रहीं हैं...सखिगण लज्जाशीला कू सिंगार धरावन तांई किंचित कंचुकी सौं  आँचल हटाई दें तो प्यारी जू पुनः दुराइ कै स्वयं कू छुपाइवे कौ प्रयास करै...
च्यौं... ! च्यौं री...प्यारी जू के सुकोमल रसप्याले से भरे कनक कलश सुसज्जित भए प्यारे के नखों से सुरख लाल...हा...
जेई झाँकि कू निरख रहै प्रियतम पीताम्बरधारी सम्मुख सिंगार कुंज में झाँकती एक बंदनवारों से सजी किवड़िया से जो सुरभिनि श्वासों से तनिक सरक फुरक जाती और प्यारे को प्यारी जू की लजीली मंद मुस्कान निरखाती...अहा...
जेई कीर्तिकुमारी कू निहारत निहारत रसपल्लवन सौं प्रियतम अधीरतावश भीतर प्रवेश पानो चाह्वै...पर सेवातुर...प्रेमवत्सलातुर...प्यारी जू कौ सिंगार धरानो चाह्वै अपने कोमल कर सौं...
पर स्थिति कू विपरीत जान वहीं किवरिया की ओट में बैठ अपना सरस रसीला पीताम्बर बिछाए कै...यांते मुरली धर...मुरलीधर प्रियतम सुंदर कोमल करुंगलियों से प्यारी जू के पाइनि की पायल सजाने लगते हैं नन्ही नन्ही कलियों से...जयजय...
अब पाइनि की पायलिया ऐसी सजी कि प्रियतम की उतकण्ठा प्यारी कू सेवन तांई अत्यधिक बढ़ रही...तो लो...वे तो सगरी सखियन की प्रवाह किए बिन पायलिया कर में लिए...पीताम्बर मुरली वहीं किवरिया की ओट में छुपाए कै ...और लाल सुभग चूनर औढ़े सहचरि स्वरूप धर भीतर सिंगार निकुंज में प्रवेस पाए लियो...
हाय...सखिगण सचेत हुईं जे रसीली रंगीली त्रिभंगी चाल ढलन कू निहार सब जान ही गईं पर मौन रहीं चूँकि प्यारी जू जे प्यारे जू की चाल ना निरख सकीं और मंद मुस्काए के यांते विनय कर रही कि ...लाओ...धराओ अपनी रसभरी सेवा मो चरनन में...अहा...भोरी जू की मधुर रसीली मुस्कनिया और उस पर जे अति मनमोहक प्यारी सी बिनय...प्रियतम तो जेई चाह रहे ना...
तो तुरंत बिराज गए प्यारि चरनन में...
इधर चतुर सखी जाए कै प्यारे जू का पीताम्बर मुरली चुराए ली...और जैसे ही प्रियतम प्यारी जू चरनन में पाजेब धराने चले...आह...चतुरा ने प्यारी जू की गोद में धर दीने दोऊ सिंगार...पीताम्बर और मुरली...हाय...
यहाँ प्यारे जू का कर हड़बड़ाहट में प्यारी जू के चरनन सौं छू गयो और तहाँ प्यारी जू को समझते देर ना लगी प्यारे जू की चाल...
तुरंत पाजेब प्यारी जू चरनन तें धर प्रियतम लुण्ठित हुए और आग्रह कर रहे...क्षमा याचना कर रहे...लौटाए दो प्यारी...मोर पीताम्बर चूनरी...मोहे लौटाए दो...पर प्यारी जू की तो सुधि ही बिसर गई आँचल की तो ना रही और ना रही सिंगार की...तन गईं भौंह...और किंचितमात्र भृकुटि विलास हुयो कि प्रियतम तमक कर धरा पर गिरते अश्रुओं से लिप्त प्यारी चरणों कू निहारते रह गए...
ऐसी भोरि किसोरि जू कौ मान तो जैसे मंद मुग्ध पवन के झोंके समान ही अधरों व भृकुटि पर तैर कर चलो गयो...पर समक्ष ललितादिक सखियन तांई प्यारी जू मान-विलास कर रहीं आज...
जानती वे प्रियतम की दशा...अरी भोरि ना समझै तो कौन की बिसात प्यारे के हिय की जान सकै...अहा...
सांचि कहूँ सखी जू...जे पीताम्बर...पीताम्बर ना है...जे तो प्यारी जू ही हैं...कांचनवर्णां...कनकलता सी जो प्रियतम अंग तें लिपटी सिमटी रहै सदा...और जे मुरली...आह...मुरली ना है री...जे सुमरनी सी जो प्रियानाम माला कू गान करै जाचै है ना...जे तो प्रिया जू स्वयं हैं...अधर धर प्रियतम पान करै निरंतर जांकि रससुधा का...अहा...
सखी...प्यारी जू प्रियतम कू यूँ आया जान किंचित भीतर से रस से सराबोर हुईं जा रहीं पर मुख तें सहज दामिनी सी प्रगटाती प्रिय घन कू निहार रहीं...भीतर रसभरी बैठीं भोरि किसोरी जू कि बस...अब बरसीं...कि तब बरसीं...जहँ दामिनी कौंधी और प्रियतम कू अंक में समाए रसप्रफ्फुलित मेघ रसवर्षा करने को...
पर रसवर्धन हेतु ही जे मान में गढ़ी भई...किंचित विलम्ब कर रहीं प्रियतम कू पीताम्बर मुरली लौटाने में और यांकि रस मनुहार का मन ही मन मुग्ध हुईं सघन-उन्माद उठा रहीं सखियन भी प्यारी जू पर बलिहार जातीं...झूठो...पर सुंदर स्वांग अभिनय जाचत...
प्यारी जू प्रियतम कू अति दीन अधीर हुए निरख रहीं और सकुचा रहीं सखियन समक्ष...कैसे लौटाऊँ...धीर बंधाऊँ...आह...
इतने में सखिगण भी प्यारी जू की अंतरंग रसीली प्यारे जू तांई करुणा कू जान और प्यारी जू के क्षणिक मान कू परख...मौन तोड़ प्यारी जू से मनुहार करने लगतीं हैं...अरि...वे भी तो रंचमात्र ना सह सकें ना जे मान मनुहार कू...बस...क्षणिक रसवर्धन होइवै कै तांई जैसे डूबी डूबी निहार लेतीं प्रियतम की दैन्यता और प्यारी जू की करुणा को...अहा...
लो...है गयो मानभंग...और लौटाए दी पीताम्बर मुरली...नित नई रस रीति उपजावै...और स्वयं उसमें आस्वादक आस्वादय भई जावै...आखिर प्रियतम हैं...और यांकि सेवातुरता की तो बलिहारी सखियाँ...
जयजय जयजय जयजय पुकार उठीं सब किंकरी मञ्जरियाँ और प्रियतम...अहा...पीताम्बर मुरली क्या पाए...वे तो जैसे प्यारी जू को ओढ़ धर लिए अधरों पर और त्रिभंगी मुद्रा में लगे रसीली प्यारी जू की करुणा भरी... लाड़ भरी...रसुद्दीपन करतीं...रसछिद्रों पर खेलती करुंलियों से रस सुमरने...अहा...
प्यारी जू स्वयं पहन रहीं वो पायलिया और झुकि झुकि प्रियतम के रसक्षुधित रसप्यालों को भर रहीं कलश उंडेर उंडेर...रससुधा रूपमाधुरी लुटा रहीं और रसपान करते प्रियतम के अधर मुरली पर और पीताम्बर अंग पर लहलहाता...अहा...
और सखिगण... ... ...
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
श्रीहरिदास श्रीहरिदास श्रहरिदास !! Do Not Share ...

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