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शुभता शुभ लीला । प्यारी जू

(हिंदी लीला विस्तार सहित)
________________शुभता शुभ: किम् जानामि?_____________
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सखि सत्यं वदसि किं शुभ त्वसि?
अधीर: विलम्बेतुप्रियं प्रिया: कुंजेषुबर्हि निकसि।।१।।
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तत: पुनऽवस्थितै ललितादि सखिन: रमणी धीर: धरावती।
तत्क्षणै प्रियां वामऽक्षिचलत्वं मधुवचनानि निजमुखै वदसि।।२।।
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शुभाश्ंकै मम् नयनचलत्वं अहो! प्रियतम् शीघ्रं आवति।
वाक्पटु ललितऽलि रासेश्वरी शुभता: निज पृच्छसि।।३।।
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यत् श्रुत्वां किंञ्चित मंदहास: पक्ष्म्वाञ्च सुमुखि ललितौत्तरम् ददाति।
मम् हितै मम् श्यामसुन्दरौ आगत: सर्वतौ शुभ: भवति।।४।।
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तत् किंञ्चिदून: क्लैशं तत्त्वत: यत् वार्ता: सखिन: अति प्रसारति।
ते मुरलीमनोहर: वेर्णुधरऽधरंम्नाम्नावहै मंदहसति आह! इतिहि शुभसि।।५।।
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शुभता च प्रियतम: निजमृदुऽगुंलि: मधुर: स्पर्शै मम् प्रतिअंङ्गै प्राप्यति:।
दृश्यागत: प्रिय: च मधुरस्पर्शं लुप्त: प्रिया: तद् एक: सखिन: पुनिहि कथं हसति।।६
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च त्वं प्रिय मनुहारौकृत्वं यद् त्वंरूष्टौ ,श्रुत्वां मधैश्याम: वदति।
स: मम् शुभता अस्ति! यत्श्रुत्वां राधां नयनंसलज्जभारेनमति।।७।।
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पुन: वद् श्यामसुन्दर: -- यदा "श्रीराधा:" किंञ्चितक्षणै मम् कर्णपुट: प्रविश्यति।
अहा ! तत्क्षण: मम् हित: अति- अतिव मंगलौ अस्ति।।८।।
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श्रुत्वां श्रीप्रिया: किंञ्चितगिरित्वऽक्षिकौर: वक्रदृश्यतां मंदहसति।
स: दृश्यं श्यायमसुन्दर: कथं-यदा श्रीप्यारी: नयनकटाक्षैस्मितेन च दृश्यति।।९।।
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तन्नौ स: मम् परमौऽपरम मंगलम् --इति कथ्यतौ तां परस्परौऽक्षि स्तम्भति।
"प्यारी" दृश्यं सखिन: तौ सर्वशून्यं परस्परऽवलौक्यत: परम मंगलम् अनुभवन्ति।।१०।।

____________शुभता का शुभ कौन जानता है?____________
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प्रसंग----- श्री ललिता सखीजु श्रीजु से उनकी शुभता के विषय मे पूछ रही है की उनके लिए क्या शुभ है।
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लीला विस्तार----- ललित कुंज मे बैठी प्रियाजु प्रियतम श्यामसुन्दर की प्रतिक्षा मे अति अधीर हो कुंज से बाहर एक कच्ची पगडंडी पर निकल आई तभी पीछे से कुछ सखियाँ उन्हे घेरकर पुन: कुंज मे ले आती है।
सभी विरह विह्वल प्रियाजु को एक वृक्ष के नीचे बैठाती है।बीच मे श्रीजु उनके चारो ओर कुछ ऊपर चबूतरे पर उन्हे थामे तो कुछ नीचे सखियाँ बैठी हुई है।
सभी कुछ सोच ही रही थी प्रियाजु की अधीरता दूर करने का उपाय की इसी समय प्रियाजु का बाँया नेत्र रह- रहकर फडकने लगा जिस पर प्रियाजु सखियो से बोली -- सखी देखो तो मेरा बाँया नेत्र कैसे फडक रहा है...शीघ्र ही कुछ शुभ होगा ।
तभी ललिता सखीजु बोली---- सखी! तुम्हारे लिए शुभता क्या है?
सुनकर प्यारीजु कुछ मुस्कुराई,कुछ नयन झुकाए और बोली------ ललिते  मेरे लिए तो मेरे श्यामसुन्दर का आगमन ही सर्वभावेन शुभ  है।
तभी कोई दूसरी सखी बोली------ ओर प्यारी जु........
(वास्तव मे यह सब वार्ता प्रियाजु की अधीरता बँटाने हेतू ही तो है अन्यथा क्या ये सब नही जानती की भला स्वयं शुभता का क्या शुभ क्या अशुभ?)
सखी का प्रश्न सुनकर प्यारी जु बोली-------- अरी! उन मुरलीमनोहर का वो मुरली अपने अधरो पर धर मेरा नाम पुकारकर वो मुस्कुराना............. आह! वो मुस्कान ही मेरे लिए शुभ।
अब कोई ओर सखी बोली -------। ओर प्यारी जु...!
प्यारी जु पुन: कहने लगी------ प्रियतम का अपनी कोमल करावलियो द्वारा किया गया मेरे अंग प्रत्यंग का वो मधुर स्पर्श ही मेरे लिए शुभ सखी.........
(कहते कहते प्रियाजु उस मधुर स्पर्श मे खो ही गयी थी की तभी निकट आते प्यारे जु को देख...) 
एक सखी बोली------- और आपके रूठ जाने पर आपकी मनुहार करना ,वह....श्यामसुन्दर बीच मे ही बोले..........
......................वह मेरी शुभता।
(सुनकर श्यामाजु के नयन तो नीचे झुक गये)
श्यामसुन्दर पुन: बोले----------- जब "श्रीराधा" यह किसी क्षण मेरे कर्णपुटो मे प्रवेश कर जाता है न आहा ! वह क्षण मेरे लिए परम शुभ।
( यह सुनकर प्यारी जु नीचे झुके नेत्रो मे ही कुछ तिरछी दृष्टि से श्यामसुन्दर को देख मुस्कुरा देती है)
ये देखकर श्यामसुन्दर कहे-------- ओर जब प्यारीजु अपनी तिरछी चितवन से कटाक्ष कर मुस्कुरा देती है न वह तो........... वह तो बस .....
.........वह तो मेरा परम मंगल ही सखी......
( ये कहते कहते दोनो परस्पर नयनो मे ही अटक जाते है)
और सभी सखिया मौन निशब्द दोनो को यूँ निहारते देख परम मंगल का अनुभव करती है.......

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