हमारे श्रीहरिदासी रस में श्रीयुगल नित्य बिहारित है , प्रियाप्रियतम नित्य है और नव रस में खेल रहे है (निकुँज उपासना) सो उत्सवों को रसिक आचार्य उत्सव अनुगत मनाया जाता है , नित्य रस में ही निकुँज उपासना तक ही रहना वैसे ही है जैसे ऐश्वर्य भार से आराम देकर और विश्राम तथा और भाव- सुख- श्रृंगार- आदि जुटाते रहना । श्रीयुगल के (निजहिय सुख की उपासना) * श्रीहरिदासी नित्य रस उत्सव * (रसिकाचार्य उत्सव) भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधा-अष्टमी) * श्रीस्वामीजू का उत्सव * मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी (बिहार पंचमी) (विवाह पंचमी) * श्री विट्ठलविपुलदेव जू * श्रावण शुक्ल तृतीया (हरियाली तीज) * श्रीबिहारिणी देव जू का उत्सव * आश्विनी शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) * सरसदेव जू * ज्येष्ट कृष्ण द्वितीया * श्रीनरहरिदेव जू * माघ शुक्ल पंचमी (बसन्त पंचमी) * श्री रसिकदेव जू * मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी (भैरवाष्टमी) * श्रीललितकिसोरीदेव जू * माघ कृष्ण एकादशी (षटतिला एकादशी) * श्रीललितमोहिनीदेव जू * भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) * श्रीपीतांबरदेव जू का उत्सव * कुँजबिहारिणी उत्सव (होरी महोत्सव) फाल्ग...