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ब्रजरज: वन्दना ... प्यारी जू

.........ब्रजरज: वन्दना....................
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सुख सम्पत्ति: रस दम्पत्ति,कामौ अजेय काम: पिडित:।
सुर नर मुनादि: पूजित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।१।।
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( काम के लिए अजेय होकर भी सदैव कामुक रहने वाले रस दम्पत्ति का सुख ही एकमात्र जिनका सुख है एवं जो देवता,मनुष्य और मुनिजनो की पूजनीय है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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सुमनि सार अति कोमलै,ह्रदय अनंत भाव निहित:।
अंकनि द्वौ धारित नित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।२।।
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(अपने हृदय मे अनेक युगल भावो को समाहित किये हुए,जो पुष्प पराग से भी अधिक कोमल है और जो अपनी गोद मे नित्य दोनो अर्थात युगल को धारण करती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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उर भाव युगल: रोपिणि,रस बेलि तरू सिञ्चित:।
किञ्चित न दृश्यम् वंञ्चित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।३।।
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(हृदय भूमि मे युगल भावो को लगाने वाली,रस से इन लताओ और वृक्षो को सींचने वाली जो युगल भाव राज के किसी भी दृश्य से जरा भी वंचित नही रहती,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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प्रति अंग सुअंग स्पर्शयितै,सौरभ पद कंज सुरभित:।
प्रियतम प्रिया रस लुंठित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।४।।
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(जो इनके प्रत्येक सुन्दर अंग का अपने विभिन्न अंगो द्वारा स्पर्श प्राप्त करती है,इनके चरण कमलो की सुगंध से सुगंधित रहती है एवं जो सदैव प्रिया प्रियतम के प्रेम रस मे डूबी रहती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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स्वरूपं रूपं निज परिवर्तनी,हृदयगत सुरूचि भाव उत्थित:।
कालं स्थिति दिशा रचित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।५।।
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(जो युगल के हृदय की गहनता मे उठने वाले भाव एवं उनकी रूचि अनुसार समय,स्थिति एवं दिशा का निर्माण करते हुए अपने रूप,स्वरूप मे परिवर्तन कर लेती है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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मूलं प्रति कर्माणि सुख:,जन्मानि तेषां कैवलम् हित:।
रूपं प्रत्यक्ष दैन्यं जिवित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।६।।
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(जिनके प्रत्येक कर्म का मूल कारण केवल उनका सुख है,जिनका जन्म केवल उनके(युगल के) हित के लिए ही हुआ है और जो दीनता का प्रत्यक्ष जीवित स्वरूप है,ऐसी परम पावन ब्रजरज को प्रणाम है।)
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हित सेवां प्रियौ सुखै, शुभाशीष रेणु ब्रज: इच्छित:।
सम त्वं "प्यारी" समर्पित:,प्रणामि शुद्ध ब्रजरज:।।७।।
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(अपने इन प्रिय युगल की सेवा के हितार्थ इस ब्रज रेणु से शुभ आशीष की इच्छा मन मे लिए आपके समान ही इन्हे समर्पित होने के लिए यह "प्यारी" परम पावन ब्रजरज को प्रणाम करती है।)

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