*दीवारी मंगलाचार*
आज दिवारी मंगल चार।
ब्रजजुवति मिलि मंगल गावत, चौक पुरावत नन्द द्वार।
मधुमेवा पकवान मिठाई भरि भरि लिने कंचन थार।
'परमानंद' दास को ठाकुर भूखन बसन रसाल।
दीपोत्सव के पहले बीती रात्रि सखी श्यामाश्याम जु के चरण दर्शन पाए खुद को बड़भागी मानती है।उनकी सुंदर छवि को निहारती उसके नेत्रों से अश्रु बह निकलते हैं कि मुझ दासी पर श्यामाश्याम जु की ऐसी कृपा क्यों?
अत्यधिक क्षोभित स्वयं के सौभाग्य पर चिंतन करती सखी श्यामा श्यामसुंदर जु की कृपा उपकार का आभार तो व्यक्त करती है और साथ ही उनसे प्रार्थना करती है कि प्रभु इस अकिंचन अपराधिन से कभी कोई चूक हो जाए तो क्षमा कर डांट फटकार से सही राह जरूर दिखाना।सगरी रैन उसकी प्रियाप्रियतम जु की यादों में व अपने को टटोलने में आँखों में ही बीत जाती है।
अति भोर में यमुना जु के तट पर जा बैठती है।यमुना जु से बतियाती एक ही बात दौहरा रही है सखी जु कब मैं लायक थी और कब प्रभु कृपा किए कुछ नहीं जानती।अधीरता वश यमुना जु के शीतल जल में उतर जाती है और प्रार्थना कर यमुना जु से अपने सब पाप विकार हर लेने को कहती है।आज दीपोत्सव पर ज्यों अपने भीतर की बुराइयों को जला लेना चाहती हो ऐसे तप रही है।
यमुना जु से निकल एक नई देह धारण कर कुंजों की तरफ अग्रसर हो चली है।द्वार से ही एक सोहनी ले श्यामाश्याम नाम जप से अपने भीतर का व उनकी सखियों की चरण रज से अपनी बाहरी देह का श्रृंगार करती राहें बुहारती जा रही है।अप्राकृत श्रृंगार से अपने तन मन को सजा कर अब कुंज निकुजों में सखियों का संग करने लायक हो सजावट के लिए सुंदर पुष्प चयन करती है।पुष्पों में बसी श्यामाश्याम जु की महक इसकी ब्रजरज श्रृंगारित देह के लिए इत्र है जिससे यह महक गई है।पुष्पों से निकुंज का हर कोना सज चुका है।ये पुष्प इस नवदेह के आभूषण बने हैं।पुष्पों से झर रहा पराग सखी की भावदेह को अलंकृत कर उसे शुद्ध बनाता है।
सखियों की चरण रज मस्तक धर यह उन संग सुंदर सेज श्य्या का निर्माण कर मंगल गीत गाती अब भावहीणा से प्रियाप्रियतम जु के प्रति भावपूर्ण हो जगने लगी है।भाव जगते ही उसकी नीरस देह में रस उतरने लगता है।प्रेम रस उतरने से यह देह रूपी दीप जगमगा गया है।इस चमक को लिए सखी अब श्यामाश्याम जु द्वारा दिए गए सुंदर अप्राकृत उपहार इस प्रेम रस को भीतर भर तरंगायित हो चुकी है।प्रेम की महक ने इस दीप में घृत भर दिया है और अपने प्राणों में श्यामाश्याम जु के विरह से जो अग्नि प्रजवल्लित हो उठी है उससे अब यह पूर्णतः प्रकाशित हो उठी है।
सखियों संग नवदेह दीप धारण किए सखी निकुंज को दीपों से सजाने लगती है।श्यामाश्याम जु से मिलन की तड़प लिए यह उनकी सुंदर बैठक को दीपों से सजा रही है।एक एक दीप ऐसे रख रही है कि मुख से "राधा कृष्ण" जपती हुई दीपों से "राधा कृष्ण""राधा कृष्ण" ही लिखती जा रही है निकुंज की धरा पर।बीच बीच में पगडंडी रखती सखी ने पूरी बैठक को "राधा कृष्ण " लिख भर दिया है।
हर अक्षर में श्यामाश्याम जु की छवि देखती यह भाव में बहती हुई यमुना पुलिन पर आ पहुँची है जहाँ से अभी श्यामा श्यामसुंदर जु अपनी अंतरंग सखियों के साथ मानसी गंगा की ओर गुजरे हैं।उनके पद चरण रेणु को उठा अपनी माँग भर सखी अब पूर्ण श्रृंगार धारण कर चुकी है और दीप जलाती आगे बढ़ती चली जा रही है।यमुना जु में दीपदान देती हुई भी यह "राधा कृष्ण" नाम लिखती है जिससे इस मूक सखी के हृदय की बात समझ यमुना जु भी बिल्कुल शांत बहती हुईं ठहर सी गई हैं।
सखी"राधा कृष्ण" लिखती स्वयं में ही खोई सी है कि उसे यमुना जु के ठहरे हुए जल में श्यामाश्याम जु की छवि दिखाई देती है और जैसे ही पीछे मुड़ती है तो वहाँ श्यामसुंदर जु को खड़े पाती है।
इससे पहले यह कुछ कह पाती श्यामसुंदर जु इसे संग चलने को कहते हैं कि वहाँ बैठक में प्रिया जु व सभी सखियाँ एकत्रित हो चुकी हैं।सखी चुपचाप साथ चल देती है और जैसे ही वहाँ पहुँचती है श्यामा जु को दीपों के बीचोबीच विराजीं देख उसकी दृष्टि ठहर सी जाती है और वह सन्न सी खड़ी उनकी रूप माधुरी देखती रह जाती है।
जयजयश्रीश्यामाश्याम जी !!
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*गौवर्धन पूजा*
"कछु माखन कौ बल बढ़ो,कछु गोपन करि सहाय
और श्री राधे जू की कृपा तै याने गिरवर लियो उठाए"
आज गोवर्धन पूजा पर अद्भुत भोग मिष्ठान सजे हैं कुंजों निकुंजों के द्वार पर।सखियों ने अति स्वादिष्ट भोज्य पकवान बना कर उन्हें सजाया है और थालियाँ भर भर जा रही हैं गिरिराज जु को भोग पवाने।कल दीपोत्सव पर दीपों की थालियाँ सजी थीं और पूरा ब्रज रौशना दिया था सखियों ने और आज पूरे उत्साह व तन्मयता से सखियों ने ऐसे ऐसे आकर्षित भोग प्रसाद तैयार किए हैं कि सगरी नगरी महक उठी है।सखियाँ भर भर मक्खन मिसरी तुलसी दधि खीर पूरी इत्यादि की मटकियाँ ले जा रही हैं।मटकती भागतीं सी मनमोहक चित्तवन में अपने प्रिया प्रियतम के लिए प्रेम भर भर ले जा रही हैं।राह में कई कई बंदर व बछड़े सखियों के पीछे पड़ते हैं तो वे हाथों में छड़ी लिए तेज रफ्तार से चल रही हैं।मुख पर लाली और अधरों पर गाली के स्वर सुनाती अति सुंदर झांकी लग रही है आज ब्रज की।
एक तरफ तो सखियों का झुंड गिरिराज की ओर जा रहा है वहीं दूसरी ओर कुछ सखियाँ श्यामा जु संग निकुंज में भोग प्रसाद थालायाँ सजाए बैठी हैं।कई सारे मिष्ठान ताम्बूल और केसर पिस्ता मिश्रित खीर प्रसाद जो खासतौर पर श्यामा जु ने अपने सुकोमलतम हाथों से भर भर कर प्रेम से तैयार किया है उसकी महक तो अद्भुत छाई है वहाँ कि बाकी सब पकवान फीके पड़ गए हैं।
पूजा अर्चना कर सखियाँ गिरिराज जी को भोजन अर्पण कर निकुंज की ओर ही आ रही हैं अपने श्यामा श्यामसुंदर जु के सुंदर श्रृंगार और प्रेम का दर्शन पाने।
निकुंज में श्यामसुंदर जु अपने सखाओं संग आते हैं और सखियाँ उन्हें घेर घेर आज खूब लाड़ लड़ा रही हैं।श्यामसुंदर सखियों की कतार के बीच में से आगे बढ़ रहे हैं।भर भर कर कई कई छप्पन भोग समक्ष हैं पर श्यामसुंदर जु तो प्रेम के भूखे हैं ना तो उनको ये भरपूर मिष्ठान कैसे भाएं।वे तो सब छोड़ श्यामा जु की तरफ अग्रसर हैं।बड़ी चतुराई से वे सखियों को सखाओं से उलझा जाते हैं कि वे छीन छीन कर सखियों से थालियाँ लेकर आनंद से हंसी ठिठोली करते भोग प्रसाद पा रहे हैं जिसे देख श्यामसुंदर जु अत्यंत प्रसन्न होते हैं और सखियों को तो श्यामसुंदर ही श्यामसुंदर सब सखाओं में भी नज़र आ ही रहे हैं।
इस बीच रस पिपासू श्यामसुंदर अपनी प्रिया जु पास पहुँच जाते हैं और श्यामा जु पास विराजे उनके नेत्रों में खोए खोए समा ही जाते हैं।श्यामा जु लाज के मारे नेत्र बंद कर लेतीं हैं और कुछ पलों के लिए नयनों में ही प्रियाप्रियतम जु प्रेम वार्ता में डूबे डूबे सखियों से अन्जान बैठे रहते हैं।
ये देख ललिता सखी जु इनका ध्यान बटाती हुई श्यामा जु द्वारा बनाई खीर का सुंदर मणिजड़ित पात्र श्यामसुंदर जु के समक्ष ले आतीं हैं जिसकी महक से श्यामसुंदर जु श्यामा जु के नेत्रों की गहराई से बाहर आते हैं।पर तभी विशाखा सखी जु ललिता जु से पात्र लेकर छुपा लेती हैं और कहती हैं
अरे ऐसे कैसे आसानी से ये अमूल्य उपहार हम श्यामसुंदर जु को देदें जबकि पर्वत राज जु को श्यामसुंदर जु ने अकेले तो उठाया ही ना था।ये तो हमारी प्यारी जु की ही शक्ति थी जो कन्हैया ये कर पाए।
श्यामसुंदर जु ये सुन श्यामा जु की ओर देखते हैं और स्वीकार करते हैं कि हाँ श्यामा जु अगर आपका प्रेम ना हो तो मैं कुछ भी कहाँ कर सकता हूँ।श्यामा जु भी श्यामसुंदर जु से इतना ही कह पातीं हैं
हाँ प्यारे जु ये केवल मेरे प्रेम की सामर्थ्य से नहीं अपितु आपका प्रेम ही है जो आप मुझे हर तरह से बड़ाई देते हो।मैं तो स्वयं आपके काबिल नहीं पर आप बिन अधूरी ही हूँ।
इतना ही कहना था कि श्यामसुंदर जु की आँखें भर आती हैं और श्यामा जु विशाखा सखी जु के हाथों खीर का पात्र लेकर श्यामसुंदर जु को स्वयं अपने हाथों से पवातीं हैं जिससे श्यामसुंदर जु खीर के साथ साथ श्यामा जु की कोमल अंगुलियों की छुअन से मिले रस से अति विभोर हो जाते हैं और फिर वे भी श्यामा जु को अपने हाथों से खीर खिलाते हैं।जय जय अद्भुत छवि!
तमाम सखियों के हाथों में भोग थाल पकड़े हैं पर सब श्यामा श्यामसुंदर जु को निहारती हुईं अपनी सुद्ध खो बैठीं हैं।वे जानती हैं कि श्यामसुंदर जु प्रेम पिपासू हैं।उनको प्रेम ही आकर्षित करता है।
वहीं गिरिराज जी भी ढेरों भोग मिष्ठानों से घिरे सखियों की निगाहों में छुपे प्रेम का ही पान कर रहे हैं।उन्हें अपने समक्ष नृत्य गान करतीं सखियों का प्रेम ही मोहित कर अपनी ओर खींच रहा है और रस पिपासु वे इनकी मधुर चित्तवन में ही खोए इन्हें निहार रहे हैं।
"रास रसीया रस रसीलो चाखै
छप्पय भोगन तै ना नज़र डालै
श्यामा जु हाथन खीर भोगै
सखियन नेत्र कटोरन तै भर भर प्रेम ही पीवै
ऐसो न्यारो मेरो भोरो श्याम पिया
अनोखो प्रेम देय कै प्रेम तैं ही खोवै"
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*पासा खेलत हैं पिय प्यारि*
नित्योत्सव स्थली श्रीधाम वृंदावन माहिं दीवारी की धूम मच रही !चहुं दिसि साज संवार सौं कुंज निकुंजन व कुंड जगमग जगमग है रहै !
स्यामास्याम जुगलबर नित्य नवरसोत्सव में बिहरन करते गरबहियाँ डारै कालिन्द नंदिनी के अतिपावन व रसनिमज्जित कूल पर दीपदान करि कै अपने प्रेमधाम व सखी सहचरि कू उन्मादित उत्साहित निरख फेर परस्पर निहारन में तन्मय है रहै !
कोटि कोटि दीवले यमुना तट पर झलमला रहै जिनसे प्रतिबिम्बित होतीं लता बल्लरियाँ मणिजटित आभा बिखेर रहीं पर जहं स्यामा जु बिराजित तहं की सोभा बर्णत न बनत !
याके नख चंद्र की सोभा सौं अवनि पर सदा रससुमन सींचित होते पर आज दीप प्रज्जवलित है रहे ....याकी नखप्रभा की चंद्र ज्योति स्वतः द्वीपों को प्रकासित कर रही !गौरांगी प्रिया जु के अति सुरम्य मुख की रश्मियों से प्रकाशित याके रत्नाभूषण व निकुंज की मणिमय लता पताकाएँ स्वतः प्रिबिम्बित होय रही श्रीजुगल के चरणकमलों पर और वारि वारि जातीं अपने सौभाग्य पर....
मंद मंद संगीत ध्वनियों के मध्यस्थ मणिमय बल्लरियों से सुसज्जित एक हटरी में स्यामास्याम बिराजित भए जिसे सखियन ने पीतरंग की मणियों से सजाया है और जिस पर बिराजित नवलकिसोर की रूपमाधुरी की छटा पड़ै तो या मणियों कौ रंग पीत से नीलसुपीत होय रह्यो !
समक्ष सखिगण स्यामास्यामसुंदर जु कै रसबर्धन हेत चौसर बिछाए रहीं !स्यामा जु सखियन के प्रेम पर बलिहारि जाए री और इधर स्यामसुंदर पियप्यारि की प्रेमसनी निहारन कू निहारते ना अघा रहै !
अब सखियन नै स्यामास्यामसुंदर जू सौं चौपर कौ खेल आरम्भ करनै की कहि तो स्यामसुंदर मन ही मन मुस्काए और अखियन कै इसारे तेइं स्यामा जु नै कहै
"मैं तो पहले ही तन मन प्राण हार चुको हूँ तो ज्ह खेल जीतनो कहं ते होइ"और उधर स्यामा जु तनिक स्यामसुंदर की नयन झकझोरन सौं याके हिय में उतर कै यानै खेलन निमित्त आमंत्रण भी दे रहीं व याने कह रहीं
"ना प्यारे...वारि बलिहारि तव रूपसुधा की रसभीनी नजरिया व परखन तें न्यौछाबर ...पर खेल तो बराबरी कौ होनो ही भावै है ना"
मंद मंद मुस्कन और नयनन की बातन कौ सुख अति न्यारौ !!
सखियन नै ताली दे कै जुगल नै खेलन कू कही और रसबर्धनिका ललिता जु नै पासा फैंक प्यारि जु नै पहलो दाव चलन तांई कहि और स्नेह सहचरि बिसाखा सखि नै प्यारि जु कौ प्रोत्साहन दियो !
एक एक कर कई दाव खेलै जुगल नै जामै कबहु तो स्यामसुंदर प्रिया जु सुखहेत जीत जावै तो अधिकतर स्यामा जु स्यामसुंदर सुखहेत उनको हरा देवैं !
सखियन तारि दे कै स्यामास्यामसुंदर नै प्रोत्साहित करैं और कबहु ठहाके मारैं स्यामसुंदर जु की स्यामा जु समक्ष रसस्कित हारन तैं !सम्पूर्ण निकुंज जैसे आतिसबाजी होय रही ऐसे गुंजायमान होय रह्यौ !
कहीं स्यामा जु स्यामसुंदर सौं नयन मिलावै तो कहीं नयन कटाक्षन सौं याकि सुधि बिसारए कै खेल जीत जावै !
हर बार स्यामसुंदर जु कबहुं पीताम्बर वंसी तो कबहुं कंकन कंठहार दाव पर लगावैं और हार जावैं !मोरपखा कटिबद्ध कुण्डल एक साथ स्यामा जु की एक चंद्रिका सौं हार जावै तो कबहु उनके लटपाश की कपोलों पर थिरकन सौं अपनो बाजि चलन सौं नठ जावै !
स्यामा जू कै करकमलों पर जावक की लालिमा ..अधरों पर ताम्बूल पान कै लालित्य व काजर की कालिमा पर तन सौं हार जावै !स्यामा जु के मुखकमल पर तनिक मणिरत्न मुक्ताओं कै मधुमय नयन चौंध्याते प्रतिबिम्बन सौं नयन झपकावै !ऐसो रसन कू अति रंग गहरौ के स्यामसुंदर स्यामा जु कै हाव भावन पर ही ढुरकै चौसर हार रहै और मन ही मन स्यामा जु को जीतते देख रसमय होय रहै !
स्यामा जु जानै हैं के स्यामसुंदर ज्ह खे मोय जिताह्बै की खातर ही खेल रहै और जब तक नाए जीतूंगी नाए मानैंगे !
सखिगण भी जानै हैं चुकिं ज्ह खेल तो बहानो है ..हार जीत कौ नाए...
"प्रेम कौ खिलोनो दोऊ खेलै प्रेम कौ खेल"
स्रमजल कण चमक परै स्यामसुंदर जु कै मस्तक तैं जिसे देख सखियन नै स्यामसुंदर कू अब आखिरी पासा फैंक स्वयं कू दाव पर लगानै कू कहि और यानै अपनो अंचल सौं भींजन करनै लगी !
स्यामसुंदर नै जहं आखिरी दाव चल्ह्यो और वहाँ स्यामा जु ने तनिक अपनो घुंघट ढुरकाए दियो जिसे देख स्यामसुंदर पासा फैंकनो बिसराए कै याकि रूपमाधुरि कौ पान करन तांई चौसर कौ अद्भुत प्रेम खेल हार गह्यौ !सखियन स्यामा जु की चतुराई और स्यामसुंदर जु की प्रेममयी रसलम्पटता पर 'जय हो...जय हो' कर तारि दे दे मधुर हंसी की फुहारों का पुस्पन सम वर्सण करने लगीं और श्रीजुगल परस्पर प्रेम में सने नयनझरोखों से हृदयस्थ प्रेम बार्ता कर मधुस्मित रसझांकि कौ आस्बादन कर रहै !!
एक चौसर की बिसात सखियन ने बिछाई जिसे स्यामसुंदर हार चुके और दूजी बिसात स्यामा जु के रूप सौंदर्य की जहं स्यामसुंदर जु के नयनकटोरे और तृषित अधर पासे बने रूपरसांगों का अबलोकन करि कै अनंत बार हार हार कर भी खेलन सौं ना तृप्ति पाते !
जयजय श्रीजुगल !!
जयजय नित्य द्वीपोत्सब !!
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