*तृषा वर्धन* चेतना सदा से तृषित है, अतृप्त है क्योंकि छूटी हुई है उस महाचैतन्य से।पुनः उस महाचैतन्य केे रस स्पर्श ही इसकी वास्तविक तृषा उदित होने लगती है, वर्धित होने लग...
*अमितानुरागिणी वेणु वेणु जय जय वेणु जय श्रीवेणु* श्रीवेणु जो अपने रव रव से श्रीहित सुधा, प्रेम सुधा पिला रही है, इस वेणु के भीतर ऐसा दिव्य रस भर रहा है श्रीस्वामिनी जु का ...
Do not SHARE हा...हा...करत ना देति... सखियन संग प्राणप्रियतमा भोरी किशोरी जू सिंगार कुंज में रसहिलोर में सिंगार धरातीं रसीली सखियन की कोमल छुअन से स्पंदित सिहरित हो रहीं हैं...सखिगण लज्जा...