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श्यामल महाभाव , तृषित

श्रीजी से पृथकता झँकन बनी रहना या पृथकता की लालसा बनी रहना महाभाव दशा नहीं है ।  चेतन तत्व (आत्मा) साम्य होकर भी संस्कार आदि द्वारा विशेषणों से नव नव रूप में सज्जित है । प्रेम सहजतम चेतन रसतत्व है और वही उनकी प्रीति हमारे भीतर छोड़ी गई है । बाह्य आवरणों में वह प्रीति सुक्षुप्त या अस्तवत है परन्तु निजतम प्रियतम संस्पर्श और प्रियतम रस मज्जन से वह प्रीति स्पर्श आपको हो सकता है । वही स्पंदन वें प्रिया है जो कि स्वयं के सर्वतोभावेन सरलतम प्रेम में डूबकर प्रेमास्पद में खो जाने से झँकृत होती है । यह झँकृति सभी चेतन तत्वों की नव नव है । जैसे एक सँग और एक रात में एक ही स्थली पर खिलें गुलाब और मोगरे की सुगन्धें भिन्न है । जैसे क्षेत्र या जलवायु की भिन्नता पर गुलाबों की सुगन्ध भी कुछ नव-नव हो सकती त्यों हमारे स्वभाव उनकी ललिताईं का सूक्ष्मतम चेतन बिन्दु ही है । आप स्वयं को पृथक मानो प्रथम उन्हें उनकी वस्तु लौटाकर , प्राण पर प्राणी का अधिकार है क्या ??? आपके पास उनका जो जो है वह सब उन्हें देने के बाद जो शेष है वह ही भाव है ।  वह भाव भी स्वयं को दृश्य या अनुभूत तत्व नहीं है , वह भी उनके या ...
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गुरू शरण , प्यारी जू

🌼🌼🌼🌼-------------भावार्थ-----------🌼🌼🌼🌼 श्रीगुरू पूर्णिमामहोत्सव  की बधाईयाँ........ ० अहो ! मूढमन: श्रीगुरूशरणं चल:। 🌼अरे मूरख मन श्रीगुरूदेव की शरण मे चल। ० किंऽन्तरै श्रीगुरूहरि: प्रकटऽप्रकटभेदितां। श्रीहरिकृपा भू: गुरौरूपं फल: ।।१।। 🌼यदि तू पूछता है क्यूँ तो सुन-------- अरे मन श्रीगुरू और श्रीहरि मे क्या अन्तर है तुझे पता है ,प्रकट और अप्रकट का ही,क्यूकी श्रीहरि सर्वसाधारण को दृश्य नही किंतु श्रीगुरूदेव सहज दर्शनीय है।इस पृथ्वी पर श्रीगुरूदेव का स्वरूप श्रीहरि की कृपा का ही तो फल है। अहो ! मूढमन: श्रीगुरूशरणं चल:। 🌼अत: अरे मूरख मन श्रीगुरूदेव की शरण मे चल। ० लोकचक्षुषां नदृश्यंहरि ईदृशंगुरौनबन्धनां। श्रीहरि पुष्पं तत्वत:गुरौ सपर्णम् दल: ।।२ 🌼मानव देह के इन भौतिक नेत्रो से श्रीहरि का दरशन संभव नही किंतु श्रीगुरूदेव के लिए इस प्रकार का कोई बन्धन नही है ।यदि श्रीहरि वृक्ष के फूल है तो सद्गुरूदेव उस वृक्ष के पत्ते ओर शाखाए है। अहो ! मूढमन: श्रीगुरूशरणं चल:। 🌼अत: अरे मूरख मन श्रीगुरूदेव की शरण मे चल। ० अज्ञानतमस गतोऽयंगुरू: ज्ञानपथप्रकाशितां । सर्वसमदृष्टा मूढ: सज्जनौ च...

शुभता शुभ लीला । प्यारी जू

(हिंदी लीला विस्तार सहित) ________________शुभता शुभ: किम् जानामि?_____________ . सखि सत्यं वदसि किं शुभ त्वसि? अधीर: विलम्बेतुप्रियं प्रिया: कुंजेषुबर्हि निकसि।।१।। . तत: पुनऽवस्थितै ललितादि सखिन: रमणी धीर: धरावती। तत्क्षणै प्रियां वामऽक्षिचलत्वं मधुवचनानि निजमुखै वदसि।।२।। . शुभाश्ंकै मम् नयनचलत्वं अहो! प्रियतम् शीघ्रं आवति। वाक्पटु ललितऽलि रासेश्वरी शुभता: निज पृच्छसि।।३।। . यत् श्रुत्वां किंञ्चित मंदहास: पक्ष्म्वाञ्च सुमुखि ललितौत्तरम् ददाति। मम् हितै मम् श्यामसुन्दरौ आगत: सर्वतौ शुभ: भवति।।४।। . तत् किंञ्चिदून: क्लैशं तत्त्वत: यत् वार्ता: सखिन: अति प्रसारति। ते मुरलीमनोहर: वेर्णुधरऽधरंम्नाम्नावहै मंदहसति आह! इतिहि शुभसि।।५।। . शुभता च प्रियतम: निजमृदुऽगुंलि: मधुर: स्पर्शै मम् प्रतिअंङ्गै प्राप्यति:। दृश्यागत: प्रिय: च मधुरस्पर्शं लुप्त: प्रिया: तद् एक: सखिन: पुनिहि कथं हसति।।६ . च त्वं प्रिय मनुहारौकृत्वं यद् त्वंरूष्टौ ,श्रुत्वां मधैश्याम: वदति। स: मम् शुभता अस्ति! यत्श्रुत्वां राधां नयनंसलज्जभारेनमति।।७।। . पुन: वद् श्यामसुन्दर: -- यदा "श्रीराधा:" किंञ्चितक्षणै मम् कर्ण...

उड़ी हुई सुगन्ध , तृषित

*उड़ी हुई सुगन्ध* भीतर के चन्दन स्वरूप श्रीयुगल रसिले है सो भीतर चन्दन को घीसा नहीं जाता फुलवत गीली मधुरिमा उसे अन्य ताप स्पर्श से सुगन्ध होकर उड़ती है ।  अर्थात भीतर चन्दन घी...

कृष्णअनुरागिनी राधा

कृष्णअनुरागिनी राधा कृष्णानुरागिनी श्रीराधा कृष्णसुवासिनी श्रीराधा कृष्णमाधुरी श्रीराधा कृष्णसागरी श्रीराधा कृष्णामहोदधि श्रीराधा कृष्णपयोधि श्रीराधा कृष्...

जयजय रससारिणी राधा राधा

जयजय रससारिणी *जयजय रससारिणी राधा राधा* *जयजय रसविस्तारिणी राधा राधा* *जयजय नवलकिशोरी राधा राधा* *जयजय विमलमाधुरी राधा राधा* *जयजय श्रीकुंजबिहारणी राधा राधा* *जयजय मृदुल सल...

हरिदासी उत्सव

हमारे श्रीहरिदासी रस में श्रीयुगल नित्य बिहारित है , प्रियाप्रियतम नित्य है और  नव रस में खेल रहे है (निकुँज उपासना) सो उत्सवों को रसिक आचार्य उत्सव अनुगत मनाया जाता है , नित्य रस में ही निकुँज उपासना तक ही रहना वैसे ही है जैसे ऐश्वर्य भार से आराम देकर और विश्राम तथा और भाव-  सुख- श्रृंगार- आदि जुटाते रहना । श्रीयुगल के (निजहिय सुख की उपासना) * श्रीहरिदासी नित्य रस उत्सव * (रसिकाचार्य उत्सव) भाद्रपद शुक्ल अष्टमी (राधा-अष्टमी) * श्रीस्वामीजू का उत्सव * मार्गशीर्ष शुक्ल पंचमी (बिहार पंचमी) (विवाह पंचमी) * श्री विट्ठलविपुलदेव जू * श्रावण शुक्ल तृतीया (हरियाली तीज) * श्रीबिहारिणी देव जू का उत्सव * आश्विनी शुक्ल पूर्णिमा (शरद पूर्णिमा) * सरसदेव जू * ज्येष्ट कृष्ण द्वितीया * श्रीनरहरिदेव जू * माघ शुक्ल पंचमी (बसन्त पंचमी) * श्री रसिकदेव जू * मार्गशीर्ष कृष्ण अष्टमी (भैरवाष्टमी)  * श्रीललितकिसोरीदेव जू * माघ कृष्ण एकादशी (षटतिला एकादशी) * श्रीललितमोहिनीदेव जू * भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (जन्माष्टमी) * श्रीपीतांबरदेव जू का उत्सव * कुँजबिहारिणी उत्सव (होरी महोत्सव) फाल्ग...