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Showing posts from May, 2018

सुविलासा उज्ज्वल श्रीप्रियाजू भाव रस संगिनी कृपा

*सुविलासा* "प्यारी तेरी बाँफिन बान सुमार लागै भौहैं ज्यौं धनख। एक ही बार यौं छूटत जैसे बादर वरषत इन्द्र अनख।। और हथियार को गने री चाहनि कनख। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा कु...

"गाम्भीर्यशालिनी"भाग - 2 उज्ज्वल श्रीप्रियाजु

"गाम्भीर्यशालिनी"भाग - 2 *ऐसी तौ विचित्र जोरी बनी। ऐसी कहूँ देखी सुनी न भनी।। मनहुँ कनक सुदाइ करि करि देह अदभुत ठनी। श्रीहरिदास के स्वामी स्यामा तमालै उछंगि बैठी धनी।।* अरी स...

गाम्भीर्यशालिनी उज्ज्वल श्रीप्रियाजु

*गाम्भीर्यशालिनी* "भूलै भूलै हूँ मान न करि री प्यारी तेरी भौहैं मैली देखत प्रान न रहत तन। ज्यौं न्यौछावर करौं प्यारी तोपै काहे तें तू मूकी कहत स्याम घन।। तोहिं ऐसें देखत मो...